Bahraich Violence: हिन्दुओं तुम्हारी दुदर्शा, दंगे के शिकार होने, लाठियां-गोलिया खाने और अपनी संपत्ति का संहार करने की प्रवृति कभी समाप्त होने वाली नहीं है। क्योंकि तुम्हारे पास न तो अपना कोई मसीहा है, न कोई संरक्षक है, न कोई प्रतिनिधि है, न कोई प्रधानमंत्री है, न कोई मुख्यमंत्री है। पुलिस तो सिर्फ तुम्हारे उपर हमेशा एक तरफा लाठियां चलाती हैं और गोलियां चलाती हैं। निर्दोष होने पर भी दंगा फैलाने के आरोप में जेल भेजती है। तुम जिसकों भी मसीहा मानते हो, वोट देकर मसीहा बनाते हो, सबके सब सेक्युलर, अवसरवादी और वोट के सौदागर निकल जाते हैं, बन जाते हैं।
नरेन्द्र मोदी से लेकर योगी आदित्यनाथ तक तुम्हारी यही कहानी है। तुम्हारे ब्राम्हण शंकराचार्य खामोश रहते हैं, तुम्हारे संत खामोश रहते हैं, तुम्हारे कथावाचक खामोश रहते हैं। यही कारण है कि तुम कश्मीर से बेदखल हो चुके हो, असम, पश्चिम बंगाल और केरल आदि राज्यों में अस्तित्व संहार के निशाने पर खड़े हो।
अभी-अभी योगी के राज उत्तर प्रदेश के बहराइच का उदाहरण देख लीजिये। हिन्दुओं के दशहरा विसर्जन पर मुसलमानों ने दंगा फैलाया, हिन्दुओं पर पत्थर बरसाया, गालियां चलायी, धारदार हथियारों से हिन्दुओं पर हमला किया। लेकिन योगी की पुलिस देखते रह गयी। योगी की पुलिस दंगाई मुसलमानों पर लाठियां नहीं चलायी, गोलियां भी नहीं चलायी, सिर्फ तमाशबीन बन कर देखती रही। जब हिन्दुओं ने प्रतिकार करने की कोशिश की तब योगी की पुलिस ने हिन्दुओं की भीड़ पर लाठियां चलाती है और कई दर्जन लोगों को सिर फोड़ देती है, शरीर के कई अंगों को तोड़ डालती है। पुलिस अपनी हिंसा से हिन्दुओं के प्रतिकार का अवसर भी नहीं देती है।
दंगे में मारे गये राम कुमार मिश्रा को जब मुस्लिम दंगाई खींच कर ले जा रहे थे तब पुलिस खामोश रही। अब पुलिस निर्दोष हिन्दुओं को ही पकड़ कर और दंगा फैलाने के आरोप में जेल भेज रही है। मुस्लिम दंगाई कितने तैयारी के साथ थे, इसका पता इस बात से चलता है कि उनके पास न केवल देशी और अवैध हथियार थे बल्कि लाईसेंसी हथियार भी थे।
लाइसेंसी हथियार से ही राम कुमार मिश्रा की हत्या हुई है, गोलियां मारने के बाद भी उसकी शरीर के अंगों पर प्रहार किया गया, कहने का अर्थ यह है कि राम कुमार मिश्रा की हत्या विभत्स ढंग से हुई है। जब मुस्लिम दंगाई हिन्दुओ के घर लूट रहे थे, जला रहे थे तब योगी की पुलिस देखती रह गयी, उनकी लाठियां और गोलियां खामोश थी।
एक ब्राम्हण का होंडा शो रूम था। उसमें अधिकतर कर्मचारी मुस्लिम थे। वह ब्राम्हण भी सेक्युलर प्रबृति का था और वह सस्ते कर्मचारी की मानसिकता से ग्रसित था। जैसे ही दंगा शुरू हुआ वैसे ही मुस्लिम कर्मचारियों ने अपने हिन्दू मालिक के होंडा शो रूम को आगे के हवाले कर दिया। आग लगाकर फरार हो गये। आग लगाते समय मुस्लिमों ने यह सोचा तक नही की इसी होंडा शो रूम से उनकी जीविका चलती है। ऐसी कई घटनाएं प्रकाश में आयी है।
मुस्लिमों के लिए काफिर कभी अपने नहीं हो सकते हैं। काफिर को मारना, उसकी संपत्ति का नुकसान करना और उसे गुलाम की तरह रखना, मुसलमानों के लिए मजहबी जिम्मेदारी बनती है। कोई भी सचा मुसलमान इस जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता है। इस मानसिकता को हिन्दू कभी भी सावधान ही नहीं हो सकते हैं।
पुलिस और अधिकारियों की सेक्युलर मानसिकता अभी भी गयी नहीं है। वे मुसलमानों पर कार्रवाई करने से डरते हैं। पर हिन्दुओं पर गोलियां चलाने से उन्हें डर नहीं लगता है। दंगा फैलाते हैं मुस्लिम फिर थोक के भाव में हिन्दुओं को जेल भेजना पुलिस और प्रशासन के लोग भूलते नहीं है। मोदी और योगी राज में भी पुलिस और अधिकारियों की यह प्रबृति समाप्त नहीं हुई है, बढ़ती ही चली जा रही है। पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों पर जब ऐसी कार्रवाई के खिलाफ कार्रवाई ही नहीं होगी तब पुलिस और प्रशासन के लोग डरेंगे क्यों? पुलिस और प्रशासन की ऐसी प्रबृति का संहार होगा कैसे?
बहराइच में एक ब्राम्हण राम गोपाल मिश्रा की विभत्स हत्या हुई। वह ब्राम्हण परिवार बहुत ही गरीब है। परिवार में जीविका का साधन सिर्फ रामगोपाल मिश्रा ही था। हमारे देश में जाति के नाम पर ब्राम्हण शंकराचार्य हैं। पर ब्राम्हण शंकराचार्यों ने बहराइच दंगे पर और एक ब्राम्हण की हत्या के खिलाफ मुंह तक नहीं खोले हैं? अभी तक शंकराचार्यों के साथ ही साथ किसी कथावाचक या अन्य संत ने भी ब्राम्हण की हत्या पर मुंह नहीं खोला है और न ही न्याय की मांग की है। जबकि ये सभी ब्राम्हण शंकराचार्य, कथावाचक और अन्य संत हिन्दुओं के पैसे पर मनोरंजन किस प्रकार से करते हैं, तोंद बढ़ाकर मस्ती कैसे करते हैं, यह भी स्पष्ट है।
एक पादरी और एक मौलवी पूरे इलाके के अपनों की सुरक्षा करते हैं, संकट के समय संकट मोचन बन जाते हैं, पर पूजारी, शंकराचार्य और संत हिन्दुओं की कौन सी सुरक्षा करते हैं। फिर भी शंकराचार्यों, कथावाचकों और पूजारियों को पैसे देकर हिन्दू उनका मनोरंजन कराते हैं। जबकि हिन्दुत्व के लिए लडने वाले हिन्दू एक्टिविस्टों को मदद करने की जगह अपमानित ही करते हैं। हिन्दुत्व की सुरक्षा ब्राम्हण शंकराचार्य, कथावाचक और संत तथा पूजारी के साथ ही साथ वोटों के सौदागर सरकारी राजनीतिज्ञ और सरकारी हिन्दू संगठन कभी नहीं कर सकते हैं।
योगी ने अभी-अभी एक बहुत बड़ा बयान दिया था और उस बयान पर मूर्ख हिन्दू था कृथा.. थैया कर रहे थे। उनका बयान यह था कि बंटोगे तो फिर कटोगे। कटने से बचने के लिए हिन्दुओं ने एकता और जागरूकता दिखायी। पहले नरेन्द्र मोदी और फिर योगी को लाये हैं। उत्तर प्रदेश में किसी अन्य का शासन तो नहीं, शासन तो योगी का ही है। फिर हिन्दू कट क्यों रहे हैं, दंगे का शिकार क्यों हो रहे हैं, उनकी धार्मिक यात्राओं पर हिंसा क्यों हो रही है, उन्हें हिंसा का शिकार क्यों बनाया जा रहा है?
इस सब का जवाब न तो नरेन्द्र मोदी दे पायेंगे और न ही योगी आदित्यनाथ। क्योंकि ये तो वोटों का सौदागर हैं, ये तो हिन्दू वोटों के सौदागर है। अभी तक योगी आदित्यनाथ उन पुलिसकर्मियों पर संज्ञान तक नहीं लिया है जिन पुलिसकर्मियों ने हिन्दुओं पर लाठिया चलायी और दंगाई मुसलमानों की हिंसा पर उदासीनता बरती है। दंगे में मारे गये रामगोपाल मिश्रा के घर भी योगी नहीं गये और न ही उनके परिजनों को नौकरी देने की सरकारी घोषणा हुई है।
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बहराइच दंगा भी हिन्दू जल्द भूल जायेंगे, फिर योगी और मोदी जिंदाबाद का नारा भी लगाना शुरू कर देंगे, योगी दो चार मुसलमानों को जेल भेजवा देंगे, यह समाचार पढ़ कर हिन्दू खुश हो जायेंगे और योगी को महान हिन्दू संरक्षक घोषित कर उनका जयकारा लगाना शुरू कर देंगे। यही कमजोरी हिन्दुओं को लात खाने के लिए प्रेरित करती है। यही कारण है कि हिन्दू कभी बहराइच तो कभी राजस्थान, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों मे मुसलमानों से लात खाता है। निश्चित तौर पर योगी और मोदी जैसे राजनीतिज्ञ भी हिन्दुओं के लिए वोट का सौदागर ही साबित हुए हैं। योगी आदित्यनाथ और नरेन्द्र मोदी के राज मे हिन्दू दंगे के शिकार क्यों हो रहे हैं, मुस्लिम हिंसकों की गोलियों का शिकार क्यों हो रहे हैं, अपनी संपति का संहार होते हुए, देखने के लिए बाध्य क्यों हैं?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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