America Iran ceasefire: ईरान और इज़राइल के बीच 12 दिन तक चले तनावपूर्ण संघर्ष के बाद आखिरकार युद्धविराम की घोषणा हो गई। लेकिन इस सीजफायर के पीछे जो कहानी सामने आ रही है, वह अमेरिका की कूटनीतिक स्थिति और दबाव में लिए गए फैसले पर कई सवाल खड़े करती है। ईरान के सरकारी मीडिया का दावा है कि अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुद युद्धविराम के लिए ईरान से गुहार लगाई।

ईरानी स्टेट टीवी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका ने ईरानी हमलों के बाद बातचीत की पहल की। ट्रंप ने 24 जून को एक पोस्ट में खुद सीजफायर की घोषणा की और सभी पक्षों से अपील की कि इस समझौते का उल्लंघन न किया जाए। इसके बाद से ही यह सवाल उठने लगे हैं कि अमेरिका, जो खुद को महाशक्ति बताता है, आखिर उस पर ऐसा कौन-सा दबाव था कि उसे सीजफायर की पहल करनी पड़ी?

व्हाइट हाउस से आया खामनेई के लिए संदेश

सूत्रों के मुताबिक, जब ईरान के मिसाइल हमले इज़रायल के अंदर तबाही मचा रहे थे, उस वक्त अमेरिका और इज़रायल दोनों मिलकर ईरान पर दबाव बनाने की कोशिश में जुटे थे। लेकिन ईरान ने झुकने से इनकार कर दिया। इसी दौरान, बताया जा रहा है कि व्हाइट हाउस से ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामनेई को एक विशेष दूत के जरिए कॉल की गई। ईरान ने साफ कर दिया कि जब तक इज़रायल हमला नहीं रोकता, बातचीत भी नहीं होगी।

कतर बना मध्यस्थ, युद्ध को रोका

इस पूरे घटनाक्रम में कतर की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही। ईरान ने कतर में स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डों पर भी हमले किए। हालांकि एयर डिफेंस सिस्टम ने कुछ मिसाइलों को रोक दिया, लेकिन कई मिसाइलें अपने निशाने तक पहुंच गईं। इस हमले के बाद कतर को भी खतरा महसूस होने लगा।

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कतर ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए सक्रियता दिखाई और पहले ईरान से बात की, फिर अमेरिका से। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कतर के अमीर ने खुद पूरी रात जागकर दोनों देशों के अधिकारियों के साथ बातचीत की। कतर ने साफ संदेश दिया कि उसका देश अमेरिकी बेस को शांति बनाए रखने के लिए इस्तेमाल करने की इजाजत देता है, न कि युद्ध की जमीन बनाने के लिए।

कौन जीता, कौन हारा

अब बड़ा सवाल यह है कि इस जंग में असल जीत किसकी हुई? अमेरिका और इज़रायल जैसे ताकतवर देश भी ईरान को थाम नहीं पाए और अंत में सीजफायर की पहल अमेरिका को करनी पड़ी। भले ही अमेरिका ने सीजफायर को शांति का रास्ता बताया हो, लेकिन इस घटनाक्रम ने उसकी रणनीति और दबदबे पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

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