चित्रकूट: अस्थमा (दमा) की बीमारी होने पर घबराने की जरूरत नहीं है। यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है, समय रहते बीमारी की पहचान होने पर इसे नियंत्रित किया जा सकता है। जरूरी है कि दमे के प्रति स्वीकारता दिखने की। द ग्लोबल अस्थमा रिपोर्ट 2018 के अनुसार भारत में 1.30 करोड़ की जनसंख्या में से 6 प्रतिशत बच्चे एवं 2 प्रतिशत युवा अस्थमा से पीड़ित हैं।

जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. बीके अग्रवाल ने बताया की अस्थमा एक एलर्जिक बीमारी है। धूल, धुआं या किसी भी प्रकार की एलेर्जी के कारण सांस की नालियों में सूजन आ जाती है, जिससे सांस लेने में परेशानी होती है। वैसे तो यह अनुवांशिक बीमारी है और एलर्जी से बढ़ती है। परंतु कुछ ऐसे सामान्य ट्रिगीर हैं जो की इस बीमारी को बढ़ाने का काम करते हैं। धूल, धुआं, बदलता मौसम, जंक, खाद्य पदार्थ, तंबाकू या उससे निकालने वाला धुआं, ठंडा पानी, दमे के लक्षणों को बढ़ाने का कार्य करते हैं। इतना ही नहीं अस्थमा ग्रस्त व्यक्ति में भावनात्मक बदलाव भी अस्थमा के लक्षणों के बढ़ने का एक खास कारण है।

बालरोग विशेषज्ञ डॉ. एके सिंह ने बताया कि दमा एक आम बीमारी है जो कि 8-10 प्रतिशत बच्चों को प्रभावित करती है। इसके कई कारण हैं, औद्योगिकीकरण, धूल, धुआं, कीटनाशक का इस्तेमाल इन सबसे वातावरण में प्रदूषण बढ़ रहा है। दमा पहले विकसित देशों तक सीमित था परंतु अब यह बीमारी हर जगह अपने पैर पसार रही है। अलग अलग बच्चों में भिन्न-भिन्न कारणों से यह बीमारी हो सकती है। अधिकतर बच्चों में यह बीमारी बड़े होते होते खत्म हो जाती है। दमा के बारे में लोगों में अनेक प्रकार की भ्रांतियां हैं। जिसकी वजह से माता-पिता बच्चों को सामान्य जीवन जीने पर पाबंदी लगा देते हैं। ऐसा न करें, छाती परीक्षण से बीमारी का आसानी से पता किया जा सकता है। जिसके उपरांत नियमित इन्हेलर से लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है।

क्लोसिंग गेप्स इन अस्थमा केयर थीम पर इस वर्ष मनाया जा रहा है विश्व अस्थमा दिवस। अस्थमा केयर में गेप्स को कम करने के मुख्यता तीन भाग हैं-

– अस्थमा के ट्रिगर्स को टालने की कोशिश करें
– इन्हेलर का नियमित रूप से इस्तेमाल करें
– अस्थमा के लक्षणो पर पूर्ण रूप से ध्यान दे ताकि समय रहते नियंत्रिय किया जा सके

इन्हेलर को स्वीकारने की है आवश्यकता

बहुत से लोग अस्थमा की बीमारी को स्वीकारने से कतराते हैं, जिस कारण उनके लक्षण इतने अधिक बढ़ जाते हैं कि एक गंभीर रूप ले लेते हैं। लोगों में भ्रम होता है कि अस्थमा के इन्हेलर के इस्तेमाल से उन्हें किसी प्रकार के दुष्प्रभाव हो सकते हैं। ऐसा नहीं है, इन्हेलर में गोलियों से 20 प्रतिशत कम माइक्रोग्राम होता है, जो कि सीधा फेफड़ों में जाकर असर करता है। इसका किसी भी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव नहीं है। कोविड काल के दौरान व्यक्तियों ने इन्हेलर का नियमित रूप से इस्तेमाल किया, जिससे यह देखने में आया कि उनके लक्षण पहले से काफी कम हुए थे। इतना ही नहीं इन्हेलर के नियमित इस्तेमाल से रोज़मर्रा के कार्यों को करने में भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता।

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अस्थमा लक्षण

सांस लेने में तकलीफ
पसलियों का तीव्रता से चलना
खांसी, विशेष रूप से रात के समय हंसी और सांस लेते वक्त घरघराहट होना
सांस लेते समय सीटी जैसा आवाज निकलना
सांस की तकलीफ और छाती में जकड़न महसूस होना

बच्चों में लक्षण

लंबी खांसी या बार बार खांसी का होना
दौड़ने या सीढ़ियां चढ़ने पर सांस फूलना या खांसी आना

आवश्यक जांचें

रक्त जांच से इस्नोफिलिया का पता लगाया जा सकता है। छाती के एक्सरे से निमोनिया एवं टीबी का पता लगाया जा सकता है। पुलमोनरी फंकशन टेस्ट एवं स्पायरोमिटर से सांस की रुकावट एवं गंभीर स्तिथ का पता लगया जा सकता है।

ट्रिगर्स से बचाव के उपाय

धूल, मिट्टी, धुआं, प्रदूषण होने पर मुंह और नाक पर कपड़ा ढकें। सिगरेट के धुएं से भी बचें। ताजा पेन्ट, कीटनाशक, स्प्रे, अगरबत्ती, मच्छर भगाने की कॉइल का धुआं, खुशबूदार इत्र आदि से यथासंभव बचें। रंगयुक्त व फ्लेवर, एसेंस, प्रिजर्वेटिव मिले हुए खाद्य पदार्थों आदि से बचें।

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