रविंद्र प्रसाद मिश्र

UP Nikay chunav 2022: उत्तर प्रदेश में होने जा रहे निकाय चुनावों (UP Nikay chunav 2022) को लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। राजनीतिक दलों की तरफ से इसी तरह की तैयारी भी की जा रही है। ऐसे में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) जहां अपने पुराने एमवाई (मुस्लिम-यादव) और बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) के एमडी (मुस्लिम-दलित) फैक्टर पर सियासी मोहरे बछाने शुरू कर दिए हैं, वहीं बीजेपी (Bharatiya Janata Party) का सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास वाला फार्मूला सब पर भारी पड़ा रहा है।

इसके बावजूद भी बीजेपी (Bharatiya Janata Party) सपा के एमवाई और बसपा (Bahujan Samaj Party) के एमडी फैक्टर को मात देने के लिए नए फार्मूले पर काम कर रही है। विपक्ष पार्टी में मुस्लिम चेहरे को लेकर लगातार बीजेपी को घेरने की असफल कोशिश कर रही है, वहीं योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार के एकमात्र मुस्लिम मंत्री दानिश अंसारी ने मुस्लिम कार्यकर्ताओं की तरफ इशारा करते हुए कहा है कि जो भी कार्यकर्ता चुनाव लड़ना चाहेंगे पार्टी उन पर विचार करेगी।

उन्होंने कहा है कि हमारी सरकार बिना किसी भेदभाव के सभी वर्गों के लिए काम किया है। मुस्लिम समाज खासकर पसमांदा मुसलमानों को सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का पूरा लाभ मिला है। बता दें कि बीजेपी पर अक्सर विपक्ष की तरफ आरोप रहते हैं कि वह चुनावों में मुस्लिमों को टिकट नहीं देती। बीजेपी (BJP) अब निकाय चुनाव के बहाने विपक्ष के इस नैरेटिव को बदलने की कोशिश हो रही है। बीते कुछ समय से पार्टी की तरफ से यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि बीजेपी (Yogi Adityanath) मुसलमान विरोधी नहीं है।

बीजेपी प्रवक्ता राजेश सिंह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ का जो नारा दिया उस पर केंद्र से लेकर प्रदेश तक की सरकारें पूरा अमल कर रही हैं। राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि बीजेपी (Yogi Adityanath) ने अति पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के बाद मुस्लिम वोटरों के बीच अपनी पैठ बढ़ानी शुरू कर दी है। खास तौर पर मुस्लिम महिलाओं और पसमांदा मुसलमानों को अपने पाले में लाने का पूरा प्रयास किया गया है। बीते दिनों राजधानी लखनऊ में आयोजित ‘पसमांदा बुद्धिजीवी सम्मे़लन’ को इसी नजरिए से देखा गया।

बीजेपी ने सपा और बसपा के वोट बैंक में लगाई सेंध

कभी कांग्रेस को वोट बैंक रहे पिछड़ा, दलित और मुस्लिम पार्टी के कमजोर पड़ते ही सपा (Samajwadi Party) और बसपा (Bahujan Samaj Party) में घूम गए थे। इसे यूं भी समझा जा सकता है कि दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों के सपा-बसपा में आने की वजह से कांग्रेस उत्तर प्रदेश में कमजोर पड़ गई। सपा-बसपा ने इन वोटरों को रिझाने के लिए एमवाई व एमडी फैक्टर पर फोकस करके काम किया। इसी का नतीजा रहा कि प्रदेश में कांग्रेस जहां सत्ता से दूर हो गई वहीं, लंबे समय से सपा और बसपा की सरकारें बनती रहीं।

वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी फैक्टर के सामने जातीय समीकरण धराशायी हो गए। केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में न सिर्फ बीजेपी की सरकार बनी, बल्कि कई राज्यों में बीजेपी का तेजी से फैलाव हुआ और बीजेपी आज देशा की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। कई राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं। पीएम मोदी के सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास नारे के साथ चलाई गई योजनाओं का जादू जनता पर इस कदर चला कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी दोबारा सत्ता में आ गई।

विपक्ष की तरफ से हार की खीझ मिटाने के लिए कभी ईवीएम तो कभी संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठाए गए। जबकि बीजेपी (BJP) की तरफ से सभी वर्गों को ध्यान में रखकर योजनाएं चलाई गईं। कोरोना काल के दौरान विपक्ष की तरफ से सरकार के खिलाफ नैरेटिव फैलाने का पूरा प्रयास किया गया। वहीं मुश्किल दौर में सबकों फ्री राशन देकर सरकार ने गरीबों की जो मदद की, उसने सारे नैरेटिव पर पानी फेर दिया। पिछड़ा, दलित और मुस्लिम एक बार फिर विपक्ष के निशाने पर है। सभी दल इन्हें साधने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। जातीय समीकरण को देखा जाए तो सपा के यादव और बसपा के दलित वोट बैंक में बीजेपी तगड़ी सेंधमारी कर चुकी है।

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मुस्लिमों को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी लगातार प्रयासरत भी है। तीन तलाक, हलाला, पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने की कड़ी में बीजेपी काफी हद तक सफल भी हुई। कहा जाता है कि इस्लाेम में किसी किस्मी का जाति भेद नहीं माना जाता, लेकिन पसमांदा मुसलमानों को लेकर मुस्लिम समाज की जो सोच है, उससे भेदभाव की बात से इनकार नहीं किया जा सकता। बीजेपी की नज़र इन्हीं सब मुद्दों पर है। बताया जाता है कि पसमांदा मुसलमानों की तादाद मुस्लिम समाज की कुल आबादी में 80 फीसदी है।

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