संजय तिवारी

लखनऊ: गाजीपुर, आजमगढ़ और मऊ की राजनीति हमेशा से भूमिहार केंद्रित रही है। झारखंडे राय से लेकर कल्पनाथ राय, पंचानन राय और कृष्णानंद राय से होते हुए यह पिछले एक दशक से मनोज सिन्हा पर आकर केंद्रित हुई। कृष्णानंद राय के बाद मनोज सिन्हा एक ऐसे गंभीर चेहरे के रूप में उभर कर सामने आए कि वर्ष 2017 में वे उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा बन गए, यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री नहीं बन सके। भाजपा ने उनके राजनीतिक कद को देखते हुए कश्मीर का राज्यपाल बनाकर उनकी राष्ट्रीय स्थापना की कोशिश की क्योकि वे केंद्र सरकार में रेल मंत्री रह चुके थे लेकिन 2019 में लोकसभा तक नहीं पहुंच पाए।

ये तो इतिहास की बात हो गयी, लेकिन वर्तमान यह है कि 2022 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूरी प्रतिष्ठा उत्तर प्रदेश में दांव पर लगी थी, तब मनोज सिन्हा के गढ़ कहे जाने वाले गाजीपुर जिले की सभी सीटों से भाजपा का सफाया हो जाना कई सवाल खड़े कर रहा है। ऐसा बताया जा रहा है कि इस बार गाजीपुर में विधान सभा की अधिकांश सीटों से ऐसे लोगों को ही टिकट दिया गया था जिनकी सिफारिश मनोज सिन्हा ने की थी। इस बार चुनाव प्रचार के दिनों में गाजीपुर में उनकी उपस्थिति भी काफी रही। हालांकि राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर रह कर कोई व्यक्ति चुनाव प्रचार नहीं कर सकता, लेकिन यह सच है कि मनोज सिन्हा इस अवधि में गाजीपुर में रहे और कई स्थानीय मंदिरों में उन्होंने पूजा पाठ, दर्शन आदि किया।

अब जबकि परिणाम आ चुके हैं तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि मनोज सिन्हा जैसे कद्दावर नेता के बावजूद भाजपा को गाजीपुर में इस तरह मुहकी खाने की असली वजह क्या है। केवल गाजीपुर ही नहीं बल्कि मऊ और आजमगढ़ के भी भूमिहारों ने क्या भाजपा से दूरी बना ली? यहां यह भी उल्लेख करने योग्य तथ्य है कि घोसी के सांसद अतुल राय भी भूमिहार बिरादरी से ही आते हैं लेकिन बलात्कार के एक मामले में जमानत के बाद भी वह जेल में ही हैं।

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यह चिंता भाजपा के लिए बहुत गंभीर है। गाजीपुर और मऊ और आजमगढ़ ऐसा क्षेत्र है जो दक्षिण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रभाव वाले रजानीतिक पृष्ठभूमि को जोड़ता है। ऐसे में मनोज सिन्हा जैसे सशक्त रजानीतिक प्रभाव वाले राजनेता के समूचे क्षेत्र से भाजपा का सफाया गंभीर सवाल तो है ही। अब यह भाजपा के लिए सोचने का विषय है कि आखिर गाजीपुर क्षेत्र में पार्टी की ऐसी दुर्गति क्यों हुई। यह चिंता की बात है कि भूमिहार बहुल सीटों पर भी भाजपा की हालत बहुत खराब रही।

स्थानीय चर्चाओं और खबरों में तो बहुत से तथ्य और कथ्य सुनने को मिल रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या अब मनोज सिन्हा को उनके ही गढ़ ने अस्वीकार कर दिया है या ऐसा कुछ हो गया है जो भाजपा को भीतर ही भीतर खा रहा है। यदि ऐसा है तो यह भाजपा के लिए चिंता की बात है। मनोज सिन्हा जैसे कद्दावर भाजपाई के प्रभाव क्षेत्र में पार्टी की इस दुर्गति के कारण समय से खोजने ही होंगे क्योंकि 2024 सामने है और यहाँ फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा के साथ साथ भाजपा की भी प्रतिष्ठा दांव पर होगी।

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