जिंदगी में संगत का बड़ा मायने होता है। कहा भी गया है कि ‘संगत से गुण होत है, संगत से गुण जाय।’ मतलब जैसी आपकी संगत होगी, आपके हाव, भाव और स्वभाव में उसी तरह का परिवर्तन भी होगा। साथ में यह भी कहा गया है कि ‘चंदन विष व्याप्त नहीं, लिपटे रहत भुजंग।’ मतलब संगत से आपका स्वभव बदल जाए यह भी संभव नहीं है, लेकिन संगत से आपकी पहचान जरूर बदल जाती है। संगत के चलते लोगों का आपके प्रति सोचने, समझने का नजरिया जरूर बदल जाता है। इसी पर आधारित कहानी आपके समक्ष प्रस्तुत है, जिसमें अनजाने में बनी संगत का परिणाम काफी भयानक है।

एक बार एक शिकारी शिकार करने गया, काफी चलने के बावजूद उसे शिकार नहीं मिला, थकान हुई और वह एक वृक्ष के नीचे आकर सो गया। पवन का वेग अधिक था, तो वृक्ष की छाया कभी कम-ज्यादा हो रही थी। ऐसा डालियों के यहाँ-वहाँ हिलने के कारण हो रहा था। वहीं से एक अतिसुन्दर हंस उड़ता हुआ जा रहा था, उस हंस ने देखा कि वह व्यक्ति बेचारा परेशान हो रहा हैं, धूप उसके मुँह पर आ रही हैं, तो ठीक से सो नहीं पा रहा है।

इसपर वह हंस पेड़ की डाली पर अपने पंख खोल कर बैठ गया, ताकि उसकी छाँव में वह शिकारी आराम से सो जाए। शिकारी जब वह सो रहा था तभी एक कौआ आकर उसी डाली पर बैठ गया। इधर-उधर देखा और बिना कुछ सोचे-समझे शिकारी के ऊपर अपना मल विसर्जन कर वहाँ से उड़ गया। तभी शिकारी उठ गया और गुस्से से यहाँ-वहाँ देखने लगा। उसकी नज़र हंस पर पड़ी और उसने तुरंत धनुष बाण निकाला और उस हंस को मार दिया।

बाण लगने से हंस नीचे गिरा और मरते-मरते उसने कहा, मैं तो आपकी सेवा कर रहा था, मैं तो आपको छाँव दे रहा था, आपने मुझे ही मार दिया? इसमें मेरा क्या दोष? यह सुनकर शिकारी को संकोच हुआ और उसने कहा, यद्यपि आपका जन्म उच्च परिवार में हुआ, आपकी सोच आपके तन की तरह ही सुंदर हैं। आपके संस्कार शुद्ध हैं, यहाँ तक कि आप अच्छे इरादे से मेरे लिए पेड़ की डाली पर बैठ, मेरी सेवा कर रहे थे। लेकिन आपसे एक गलती हो गयी, कि जब आपके पास कौआ आकर बैठा, तो आपको उसी समय उड़ जाना चाहिए था। उस दुष्ट कौए के साथ एक घड़ी की संगत ने ही आपको मृत्यु के द्वार पर पहुंचाया है।

शिक्षा: संसार में संगति का सदैव ध्यान रखना चाहिये। जो मन, कार्य और बुद्धि से परमहंस हैं उन्हें कौओं की सभा से दूरी बनायें रखना चाहिये!

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