Vishnugupta
विष्णुगुप्त

तेजिन्दर सिंह बग्गा प्रकरण का अंतिम कानूनी लड़ाई कहां तक पहुंच कर समाप्त होगी? इसमें हार पंजाब सरकार की होगी या फिर तेजिन्दर सिंह बग्गा की? इस प्रकरण में कानूनी अहर्ताओं को लेकर कोई एक नहीं बल्कि कई प्रश्न खड़े हुए हैं। क्या पंजाब पुलिस की कार्रवाई कानूनी अहर्ताओं पर खरा उतरती थी? क्या पंजाब पुलिस राजनीति से प्रेरित होकर ऐसी कार्रवाई के लिए अग्रसर हुई थी? पंजाब पुलिस को पहले मोहाली जहां पर मुकदमा दर्ज हुआ था वहां से गिरफ्तारी वारंट नहीं लेना चाहिए था? तेजिन्दर सिंह बग्गा की गिरफ्तारी के बाद फौरन उसे लेकर पंजाब की ओर भाग जाना क्या सही था? तेजिन्दर सिंह बग्गा को लोकल कोर्ट में उपस्थित नहीं करना चाहिए था क्या? लोकल कोर्ट से ट्रांजिट रिमांड पर तेजिन्दर सिंह बग्गा को लेकर जाना चाहिए था। पंजाब की पुलिस ने लोकल कोर्ट से तेजिन्दर सिंह बग्गा को ट्रांजिट रिमांड पर क्यों नहीं ली थी? ट्रांजिट रिमांड पर उसे पुलिस लेती तो निश्चित तौर दिल्ली और हरियाणा पुलिस के हाथ-पैर बंधे हुए होते और पंजाब पुलिस सुरक्षित अपना काम करने में सफल होती।

हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट पंजाब पुलिस से पूछ सकती है कि ट्रांजिट रिमांड पर लेने की अहर्ताएं उन्होंने निभायी क्यों नहीं? यह सही है कि पंजाब पुलिस अनिवार्य ट्रांजिट अहर्ताएं तोड़ने की दोषी है। इस कसौटी पर पंजाब पुलिस गुनहगार है और पंजाब पुलिस पर कार्रवाई की जानी चाहिए। राजनीतिक इच्छाशक्ति की पूर्ति के लिए किसी भी राज्य की पुलिस को अराजक नहीं बनाया जाना चाहिए, हिंसक नहीं बनाया जाना चाहिए, कानून का हंता नहीं बनाया जा सकता है? देश में यह देखा यह जा रहा है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की पूर्ति के लिए पुलिस अराजक और हिंसक बन रही है। इसका खामियाजा वैसे लोग भुगत रहे हैं जो अभिव्यक्ति की स्वतंतत्रा के लिए प्रेरित होते हैं, सत्ता के अंहकार और भ्रष्टचार तथा कदाचार के खिलाफ सतत संघर्षरत और सक्रिय रहते हैं। सत्ता का चरित्र भी विरोधियों का विध्वंस करना ही होता है।

आप यह सोच रहें होंगे कि असली प्रतिद्वंदिता और हिंसक राजनीति के केन्द्र में पंजाब पुलिस और पंजाब की सरकार है तो आप गलत है। सही तो यह है कि इन सभी विवादों के केन्द्र में अरविन्द केजरीवाल हैं। अरविन्द केजरीवाल के अंहकार की प्रवृति ही इस प्रकरण में साफ झलकती है। अरविन्द केजरीवाल की तानाशाही प्रवृति ही पंजाब पुलिस और पंजाब सरकार के लिए प्रेरणा बन गयी है। क्योंकि तेजिन्दर बग्गा की गिरफ्तारी करने के लिए पंजाब पुलिस ने जो सभी नियम-कानून तोड़े थे और दरिन्दगी दिखायी थी, वह मुकदमा सीधे तौर पर अरविन्द केजरीवाल से जुड़ा हुआ है। तेजिन्दर बग्गा भाजपा के नेता हैं और वे भाजपा के टिकट पर दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, जिसमें वे आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी से चुनाव हार गये थे। दिल्ली में भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच में कैसी घोर, अनैतिक और हिंसक प्रतिद्वंदिता चलती रहती है, यह भी स्पष्ट है।

तेजिन्दर सिंह बग्गा कश्मीर के प्रश्न पर अरविन्द केजरीवाल से काफी खफा थे। कश्मीर पंडितों के कत्लेआम और उत्पीड़न पर एक फिल्म आयी थी, उसका नाम था ‘द कश्मीर फाइल्स।’ ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म में कश्मीर में हिन्दुओं के कत्लेआम और विभत्स हिंसा का पर्दाफाश किया गया था। फिल्म देखने वालों की रोंगटे खड़े हो जाते हैं। दिल्ली विधानसभा में भाजपा ने अरविन्द केजरीवाल से ‘द कश्मीर फाइल्स फिल्म को टैक्स फ्री करने की मांग की थी। भाजपा की मांग पर केजरीवाल ने अशोभनीय बोल बोले थे। केजरीवाल के अशोभनीय बोल के खिलाफ भाजपा और कश्मीरी हिन्दुओं ने काफी बवाल काटे थे। बग्गा ने इन्हीं सब कारणों से आक्रोश में आकर अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ टि्वटर पर एक पोस्ट डाली थी। उसी पोस्ट को अरविन्द केजरीवाल ने अपने अंहकार और अपनी तानाशाही के खिलाफ मान कर अपने कार्यकर्ताओं से मुकदमे दर्ज करवाये थे।

पंजाब की पुलिस क्या अरविन्द केजरीवाल का गुलाम है। क्या पंजाब की सरकार अरविन्द केजरीवाल के विरोधियों का संहार करना चाहती है। इस प्रश्न की न्यायिक परीक्षण होना चाहिए। खासकर सुप्रीम कोर्ट को इस पर विचार करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट को इस प्रश्न का जवाब ढूंढने की जरूरत होनी चाहिए कि आखिर अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ टि्वटर और अन्य सोशल मीडिया पर की गयी राजनीति टिप्पणियों के खिलाफ सभी मुकदमे पंजाब में ही दर्ज कराने के खिलाफ कौन-कौन सी मानसिकताएं काम करती हैं। आपको इस जानकारी से हैरानी हो सकती है कि सिर्फ तिजेन्दर बग्गा का ही प्रकरण नहीं है। पंजाब पुलिस सिर्फ तिजेन्दर बग्गा के खिलाफ ही हाथ धो कर नहीं पड़ी है बल्कि अरविन्द केजरीवाल के कई घोर विरोधियों के खिलाफ भी पंजाब पुलिस हाथ धोकर बैठी है और हिंसक मानसिकताएं अपना रही है।

विख्यात कवि कुमार विश्वास के साथ भी पंजाब पुलिस हिंसक एक्शन में थी। पंजाब पुलिस की हिंसक मानसिकता के खिलाफ कुमार विश्वास को हाईकोर्ट के शरण में जाने के लिए विवश होना पड़ा। इसके अलावा कांग्रेस की नेत्री अलका लंबा पर भी पंजाब पुलिस की कुदृष्टि लगी हुई है। कुमार विश्वास और अलका लंबा अरविन्द केजरीवाल के पुराने सहयोगी हैं, जिन्हें अरविन्द केजरीवाल ने राजनीतिक तौर पर निपटा दिये। कुमार विश्वास और अलका लंबा राजनीतिक तौर अरविन्द केजरीवाल के मुखर विरोधी हैं और समय-समय पर उनकी आलोचना भी करते रहे हैं। कुमार विश्वास और अलका लंबा की राजनीतिक आलोचनाएं केजरीवाल के अंहकार और तानाशाही प्रबृति की खिल्ली उड़ाती हैं।

आजकल के राजनीतिज्ञ बहुत ही तुनुक मिजाजी हो गये हैं, अहंकारी और तानाशाही भी हो गये हैं। अपनी आलोचना उन्हें स्वीकार नहीं है, अपनी आलोचना को वे किसी भी स्थिति में बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं होते हैं। हमारे देश में राजनीतिक आलोचनाओं का एक लंबा-चौड़ा इतिहास रहा है। राजनीतिक आलोचनाओं का एक समृद्ध परम्परा भी रही है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आलोचना उनके दल के लोग ही किया करते थे पर नेहरू किसी को जेल भेजवाने जैसा कदम नहीं उठाते थे।

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लोकसभा में चीन के प्रश्न पर उनकी पार्टी के ही सांसद महावीर त्यागी ने नेहरू की बहुत फजीहत की थी। फिर नेहरू ने महावीर त्यागी से बदला नहीं लिया था। राममनोहर लोहिया अपने राजनीतिक जीवन में हमेशा विद्रोही रहे, उन्होंने पहले नेहरू और फिर इन्दिरा गांधी की आलोचना में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पर आज देश भर में बदले की भावना से राजनीतिक कार्रवाइयां जमकर हो रही हैं। अरविन्द केजरीवाल, उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी जैसे मुख्यमंत्रियों ने अनेकों को जेल भेजवा कर अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रश्न चिन्ह खड़े किये हैं।

बग्गा प्रकरण में अरविन्द केजरीवाल को आत्ममंथन करने की जरूरत है। पंजाब सरकार और पंजाब पुलिस को मोहरा बनाने की उनकी प्रत्यक्ष राजनीति आत्मघाती साबित होगी। पंजाब में आम आदमी पाटी की सरकार पर जनता ने बहुत भारी विश्वास दिया है। जनता के विश्वास पर खरा उतरने की बहुत बड़ी चुनौती है। तिजेन्दर सिंह बग्गा, अलका लंबा और कुमार विश्वास जैसे प्रकरण पर पंजाब सरकार अरविन्द केजरीवाल का मोहरा बन कर अपना समय गंवा रही है। आम आदमी पार्टी ऐसे प्रकरणों में ही लगी रही तो फिर पंजाब में जनता के बीच अलोकप्रिय भी हो सकती है। पंजाब में जिस तरह से आम आदमी पार्टी चमकी है उसी तरह से पतन की गर्त में भी समा सकती हैै।

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लोकल कोर्ट या हाईकोर्ट को नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट को सिर्फ तेजिन्दर बग्गा प्रकरण पर ही सुनवाई नहीं करनी चाहिए बल्कि कुमार विश्वास और अलका लंबा प्रकरण को भी इसमें शामिल करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के केन्द्र में दो प्रश्न महत्वपूर्ण होने चाहिए। एक प्रश्न यह कि केजरीवाल की आलोचना के खिलाफ सभी मुकदमें पंजाब में ही दर्ज क्यों कराये गये और पंजाब पुलिस इन मुकदमों के खिलाफ इतनी तेजी क्यों दिखायी। दूसरा प्रश्न यह कि तेजिन्दर बग्गा की गिरफ्तारी के बाद लोकल कोर्ट में उसे उपस्थित कर ट्रांजिट रिमांड हासिल क्यों नहीं की थी? पंजाब पुलिस। निश्चित तौर पर पंजाब की पुलिस गुनहगार है और पंजाब की पुलिस को उनके गुनाहों की सजा जरूर मिलनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ही इस प्रकरण पर आईना दिखा सकती है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

(लेखक राजनीतिक विशलेषक है)

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