बरेली: क्षय रोग मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस से होती है। जब मरीज इस बीमारी में ली जा रही दवा को बीच में छोड़ देता है तो उसकी यह बीमारी मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी (एमडीआर टीबी) में तब्दील हो जाती है। इसमें टीबी के जीवाणु इलाज में प्रयोग होने वाली दवाओं के प्रति रेजिस्टेंट हो जाते हैं। उस रोगी को सामान्य टीबी की दवाएं असर नहीं करती हैं। एमडीआर टीबी के मरीजों का इलाज लंबा चलता है और लापरवाही से मरीज की जान भी जा सकती है। यह कहना है जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. केके मिश्रा का। जिला क्षय रोग अधिकारी ने बताया कि बरेली में 2001 में एमडीआर के 275 और 2022 में 122 मरीजों की पहचान हो ‌चुकी है। एमडीआर टीबी का दूसरा सबसे बड़ा कारण एमडीआर टीबी के मरीज के संपर्क में आना है।

6 महीने तक लगातार दवा खाने से एमडीआर टीबी ठीक हो जाती है लेकिन एमडीआर टीबी का इलाज लगभग नौ महीने से लेकर 18 महीने तक चल सकता है, जिसमें मरीज को रोजाना दवाओं का सेवन करने की सलाह दी जाती है। इसके इलाज में डॉक्टर मरीज के लीवर, किडनी और शुगर से जुड़ी जांच भी करते हैं। इलाज के दौरान मरीजों में दवाओं के कुछ साइड इफेक्ट्स भी देखने को मिल सकते हैं।

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टीवी के लक्षण

– तीन हफ्ते या उससे ज्यादा समय तक बुरी तरह से खांसी होना।
– भूख में कमी आना।
– खांसते वक्त बलगम और खून का निकलना।
– कमजोरी या थकान महसूस होना।
– बुखार आना।
– रात को पसीना आना।
– सीने में दर्द होना।

कैसे फैलता है यह रोग

डॉ. केके मिश्रा ने बताया कि बताया कि क्षय रोग के जीवाणु का प्रसार संक्रमित श्वसन छींटों के जरिए फैलते हैं, जैसे बीमार व्यक्तियों के खांसने या छींकने या यहां तक कि बोलने से निकलने वाले छींटे। असंक्रमित व्यक्ति के सांस के जरिए उसके फेफड़ों के अंदर संक्रमित छींटे जा सकते हैं और वह व्यक्ति संक्रमित हो सकता है। सुप्त क्षय रोग के संक्रमण वाले लोगों से उनके आसपास के दूसरे लोगों में क्षय रोग का जीवाणु नहीं फैलता।

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