Shailendra Kumar Yadav
शैलेन्द्र कुमार यादव

Story: “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः” मनु ने ठीक ही कहा था, जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहां देवता रमण करते हैं। (interesting stories in hindi) नारियों के बिना धार्मिक या सामाजिक कोई भी कार्य सफल नहीं होती। नारी सम्माननीय है। भारतीय समाज में नारी का विशिष्ट व गौरव पूर्ण स्थान है। (interesting stories in hindi) भारतीय संस्कृति में अतीव गौरव की अधिकारिणी सदा से रही है। सभी शास्त्र वेद, पुराण, स्मृत, संस्कृति भी स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी स्वीकारते हैं।

नारी को लक्ष्मीस्वरूपा माना जाता है। (interesting stories in hindi) स्त्री बिना घर, जंगल सदृश होता है। “बिन घरनी घर भूतक डेरा।” अर्थात नारी के बिना घर भूतों का स्थान हो जाता है। नारी आवला नहीं सबला है. अपने चरित्र बल से, साधना से ,त्याग से,नारी अपने कुल की समाज की उद्धारक बन जाती है. कहीं पढ़ा था नारी निंदा मत करो, नारी नर की खान। नारी से नर होत है जगमत होत सुजान।

अब हम आपको एक गांव की भोली भाली लड़की से रूबरू कराता हूं। (interesting stories in hindi) जब वह छोटी होती है, तो अपने पिता के आंगन की शोभा होती हैं तथा घर में सभी का ख्याल रखती हैं। धीरे-धीरे वह एक दिन बड़ी हो जाती हैं और शादी की उम्र में जब पहुंच जाती है तो वह बिल्कुल ही बैचेन हो जाती हैं। हमेशा अपने बबूल की लाडली रही बेटी एक दिन अब इस घर से जुदा होने वाली होती हैं। तो काफी दिनों पहले ही डरी-सहमी सी रहती है।

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उस बेटी को पता है कि अब उसका ऐसे घर में जाने का समय आ चुका है, जहां उसको कोई नहीं जानता। धीरे-धीरे वह समय आ जाता हैं और एक दिन वह पापा की लाडली एक नए घर में ब्याह के पहुंच जाती है। अब सब उसके लिए अजनबी ही हैं, पर कुछ ही दिनों में वह सब लोगों में घुल मिल जाती हैं। सबकी सेवा करना, सभी को आदर देना, ऐसे ही धीरे-धीरे समय जाता है।

अब वह नए रिश्तों का निर्माण कर लेती है। कुछ दिन बाद वही लड़की मां बन जाती है। अब वो एक नई जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेती है, पूरे दिन बच्चे की देखभाल और उसी में ही अपना सारा सुख खोज लेती है। सोचती है कि वह अपने बच्चे को ऐसी परवरिश दे कि उसका भविष्य सबसे अच्छा हो।

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सच में एक मां ही होती है। जो अपने बच्चों से सच्चे दिल से प्यार करती हैं और हमेशा उसका भला चाहती है। वह खुद गीले कपड़े में लेटती है पर अपने बच्चे को हमेशा सूखे में ही लिटाती है। बच्चों को पढ़ा लिखा कर वह अपने सभी भौतिक सुखों का त्याग कर देती हैं। उसने अपनी सारी जिंदगी अपनों के लिए ही कुर्बान कर दी। वह अपने बच्चों को सारी सुविधाएं देने की कोशिश करती है।

भले ही वह खुद कभी अच्छा खाना खाने को तरस जाए या रूखा सूखा खाकर ही रह जाए और सबसे खास बात है कि वह अपने इस त्याग को कभी उजागर नहीं करती। सच में स्त्री देवी का ही प्रतिबिंब है। लज्जा जो संस्कार का ही रूप है। एक स्त्री का पूरा जीवन ही बड़ों का लिहाज, बच्चों को संस्कार देने में ही जाता है। वह सारा जीवन 5 मीटर की साड़ी में लिपट कर घूंघट में ही गुज़ार देती हैं। वास्तव में स्त्री बहुत ही महान है, वह किसी भी स्थिति में अपने को डाल लेती है, स्त्री को इसीलिए अबला नहीं, सबला माना जाना चाहिए।

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