रविंद्र प्रसाद मिश्र

मुस्लिम अपने देश में ही क्यों बेगाने होते जा रहे हैं, यह एक बड़ा सवाल बन चुका है। वह भी ऐसे देश में जहां सर्व धर्म समभाव की भावना बसती है। भारत ऐसा देश है जिसकी पहचान विविधता में एकता के रूप में होती हैं। लेकिन इस समय पूरे देश में हिंदू-मुसिलम की बातें हो रही हैं। कुछ लोगों का आरोप है में मुस्लिमों को प्रताड़ित किया जा रहा है। मगर यहां यह सवाल भी उठना लाजिमी हो जाता है कि क्या भारत में मुसलमानों को दबाया जा रहा है। इसका अगर निष्पक्षता से जांच की जाए तो पता चलता है कि मुस्लिमों को दबाया नहीं बल्कि अंकुश में लाने का प्रयास हो रहा है। भारत में मुस्लिम कहने को अल्पसंख्यक है, लेकिन बहुसंख्यक पर हमेशा भारी रहे हैं। सरकार के हर फैसले में इन्हें तरजीह दी गई, यहां तक कि प्रधानमंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने कहा था कि भारत के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का हक है। क्यों है, कैसे है और किस लिए है, क्या इसका जवाब किसी के पास है। क्या यह समाज में नफरत फैलाने का काम नहीं था। अल्पसंख्यक के नाम पर यह कैसा मजाक चल रहा था। जबकि मुस्लिमों से ज्यादा अल्पसंख्यक यहां इसाई हैं।

खैर यह बीते दिनों की बात हो चुकी है। वर्ष 2014 के बाद भारत में हालात काफी कुछ बदल गए हैं। उग्र हिंदुत्ववादी छवि बनाते हुए नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता में आ गए। इसी के बाद से देश की राजनीति में तेजी परिवर्तन होना शुरू हो गया। रोजा इफ्तार, मजारों पर चादर चढ़ाकर चुनावी माहौल बनाने वाले राजनीतिक देश के हिंदुत्व को समझने में गलती कर बैठे। मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सोए हुए हिंदुओं की ताकत का एहसास रहा और उन्होंने विपक्षी दलों के कड़े विरोध के बावजूद हिंदुत्व को जगाने का जो अलख जगाया उसका असर आज पूरी दुनिया देख रही है। भारत में रहकर देश को आग में झोकने की मंसूबा रखने वाले आज बेनकाब हो गए है। राजनीति, न्यायालय, पत्रकारिता, साहित्य व अन्य संवैधानिक संस्थाओं में देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त चेहरे सामने आ गए, जिन्हें लोग देश का जागरूक और जिम्मेदार नागरिक समझते थे। देश के सबसे बड़े शिक्षण संस्थान जेएनयू में देश विरोधी नारे तक लग गए।

कुछ राजनीतिक दलों का वजूद जातियों पर टिका था, लेकिन जातिवाद के इस काकश के टूटते ही ऐसे दल बिखराव की तरफ आ गए हैं। बसपा जहां गिनी चुनी सीटों पर सिमट गई हैं, वहीं समाजवादी पार्टी भी बिखराव की तरफ है। सपा से अधिकतर मुस्लिम चेहरे पलायन की फिराक में हैं। कुछ सियासी दल के नेता भारत में मुस्लिमों के असुरक्षित होने की बात कहकर सियासी रोटियां सेंकना चाहते हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि मुस्लिम सुरक्षित कहा है। अमेरिका में जहां नंगा करके तलाशी ली जाती है, वहीं चीन में बुर्के तक पर पाबंदी लगा दी गई है। मुस्लिम देश रहे अफगानिस्तान में तालिबानी क्या कर रहे हैं, इसे पूरी दुनिया देख रही है।

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भारत जैसा देश जो शुरू से इन्हें मान सम्मान देता आ रहा है, लेकिन इन्हें जब जब मौका मिला जख्म देने का काम किया है। कश्मीर से हिंदू परिवारों की हत्या, महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म, लूटपाट किसी और नहीं बल्कि यहीं के मुस्लिम समाज के लोगों ने किया। वर्षों से अपने ही देश में विस्थापित की जिंदगी जी रहे कश्मीरी हिंदुओं का कसूर क्या है? क्या उन्होंने ने जम्मू कश्मीर के मुस्लिमों की मदद करके गुनाह किया था क्या? लेकिन जो कुछ हुआ उससे यही साबित होता है कि इनको पनाह देना किसी गुनाह से कम नहीं है। आज तक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में धार्मिक कार्यक्रम करने, जुलूस आदि निकालने का कोई साहस नहीं कर रहा था, क्या इस सच को झुठलाया जा सकता है?

आज अगर पत्थरबाजों पर हो रही कार्रवाई पर सवाल खड़े करने वालों को सोचना होगा कि ऐसे उपद्रवियों पर आखिर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है? बात बात पर कानून हाथ में लेने वालों को सबक सिखाने की बुलडोजर नीति काफी मुफीद साबित हो रही है। ऐसे लोगों में अब इस बात का भय होने लगा है कि उनके पक्ष में जब तक लोग खड़े होकर भटका हुआ बताने की कोशिश करेंगे, तब तक प्रशासन उन पर अपनी कार्रवाई कर चुका होगा। बुलडोजर जहां घर को ध्वस्त कर चुका होगा। मध्य प्रदेश के खरगोन की घटना पर जो कार्रवाई हुई है, वह पूरे देश के लिए एक नजीर है।

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