अजय मिश्र

आजमगढ़: आजमगढ़ की पहचान मुबारकपुर की रेशमी साड़ियों से भी है। हस्त शिल्प के इस हुनर के कारीगर यहां घर-घर में मिलते हैं। वाराणसी के साड़ी बाजार की रौनक असल में मुबारकपुर के हुनर से है। विदेशों तक रेशमी साड़ियों से लोगों को कायल करने वाले इन कारीगरों के मन में टीस है।

कोरोना ने इनका कारोबार काफी प्रभावित किया है। कारोबारियों को उधार लेकर परिवार का गुजारा करना पड़ रहा है। बिचौलियों के हाथों मजबूर इन कारीगरों को हुनर की सही कीमत नहीं मिलती है।

बिचौलिए हावी न होते तो दिन कुछ बेहतर होता

आजमगढ़ मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर इस मुबारकपुर में करीब डेढ़ लाख लोग रहते हैं। सभी घरों में हथकरघे लगे मिलते हैं। कई घरों के लोग रोजगार के लिए खाड़ी देशों तक चले गए। उनके भी परिवार का कम से कम एक सदस्य रेशमी साड़ी जरूर बनाता है। एक साड़ी बनाने की मजदूरी 200 रूपए ही मिलती है। बाजार में महंगी बिकने वाली इन साड़ियों का असल मुनाफा बिचौलियों की जेब में जाता है।

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कोरोना ने तोड़ दी कमर, पटरी पर आ रहा काम

बुनकर जावेद ने कहा कि साड़ी को बनाने में हम लोगों को 200 रूपए की मजदूरी मिलती है। कोरोना संक्रमण ने हम लोगों की कमर तोड़ कर रख दी है। साड़ियां बिकती नही थीं। इसी कारण बनाई भी नही जा रही थी। उधार लेकर परिवार का भरण-पोषण किया। वहीं, कारीगर अब्दुल्ला का कहना है कि बुनाई का काम कोरोना के कारण बहुत प्रभावित हुआ। हम लोगों को अपनी आजीविका चलाना मुश्किल हो गया।

साड़ी व्यापारी नौशाद अहमद का कहना है कि कोरोना में न बाजार खुल रहा था। न ही माल बन रहा था। जो भी आर्डर मिले थे, सब कैंसिल हो गए थे। समझ नहीं आ रहा कि यह कारोबार कब पटरी पर आएगा। लेकिन, अब हालत धीरे-धीरे सुधर रही है। हम लोगों को उम्मीद है कि आने वाला समय बेहतर होगा।

आजमगढ़ जिले के मुबारकपुर के साड़ी कारोबारी नौशाद अहमद का कहना है कि धीर-धीरे पटरी पर व्यापार आ रहा है। आजमगढ़ जिले के मुबारकपुर के साड़ी कारोबारी नौशाद अहमद का कहना है कि धीर-धीरे पटरी पर व्यापार आ रहा है।

एक्जीविशन से मिलता है मुनाफा

साड़ी व्यापारी नौशाद का कहना है कि हम लोग विभिन्न राज्यों में लगने वाली सिल्क प्रदर्शनी में भी हिस्सा लेते हैं। यही कारण है कि दिल्ली, पटना, लखनऊ में हमारे स्टॉल लगते हैं। इन एक्जीविशन से हम लोगों को बहुत मुनाफा मिलता है।

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