बीजिंग। अफगानिस्तान में तालिबान हो रहे कब्जे के बाद अधिकतर देश अपने दूतावासों को बंद कर दिया है। वे अपने नागरिकों को अफगानिस्तान से जल्द से जल्द सुरक्षित निकालने में जुटे हैं। वहीं दूसरी ओर चीन ने विद्रोही संगठन तालिबान से दोस्ती का ऐलान कर दिया है। चीन ने सोमवार को कहा कि वह तालिबान के साथ दोस्ताना रिश्ता विकसित करना चाहता है। इससे पहले रूस और पाकिस्तान भी तालिबान सरकार को मान्यता देने की बात कही थी। एक दिन पहले ही इस्लामिक कट्टरपंथी समूह ने काबुल पर को अपने नियंत्रण में लिया है।

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चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने एक वार्ता के दौरान कहा कि चीन अफगानिस्तान के लोगों के स्वतंत्रतापूर्वक अपनी तकदीर चुनने के अधिकार का सम्मान करता है और अफगानिस्तान के साथ दोस्ताना और सहयोगपूर्ण रिश्ते विकसित करना जारी रखना चाहता है। बता दें कि पिछले दिनों तालिबानी नेता ने चीन के विदेश मंत्री से भी मुलाकात की थी। तालिबान प्रवक्ता सुहैल शाहीन पहले ही कह चुके हैं कि अगर चीन अफगानिस्तान में निवेश करता है तो तालिबान उसकी सुरक्षा की गारंटी देगा। चीन ने तो इस बात के भी संकेत पहले ही दे दिए थे कि अगर अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में आता है तो वह मान्यता देने के लिए तैयार है। भारत, अमेरिका, कतर, संयुक्त राष्ट्र, उज्बेकिस्तान, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, जर्मनी, नॉर्वे, ताजिकिस्तान, तुर्की और तुर्कमेनिस्तान सहित कई देश कह चुके हैं कि वो अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता को मान्यता नहीं देंगे।

रूस भी दे सकता है मान्यता

रूस ने काबुल में अपने दूतावास को खाली करने की किसी योजना से इनकार करके यह साफ कर दिया है कि तालिबान सरकार को मान्यता दी जा सकती है। विदेश मंत्रालय के अधिकारी ज़मीर काबुलोव ने सोमवार को कहा कि उनके राजदूत तालिबान नेतृत्व के संपर्क में हैं। काबुलोव ने यह भी कहा कि यदि तालिबान का आचरण ठीक रहता है तो इसके शासन को मान्यता दी जा सकती है। अफगानिस्तान में रूस के राजदूत दिमित्री झिरनोव की दूतावास की सुरक्षा को लेकर तालिबान के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर सकते हैं।

तालिबान भविष्य को लेकर अनिश्चय की स्थिति में आए- गनी

संकट में घिरे अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा है कि तालिबान अपने इरादे बताए और देश पर उसके कब्जे के बाद अपने भविष्य को लेकर अनिश्चय की स्थिति में आए लोगों को भरोसा दिलाए। तालिबान के लड़ाकों ने रविवार को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया। सरकार ने घुटने टेक दिए और राष्ट्रपति गनी देशी और विदेशी नागरिकों के साथ देश छोड़कर चले गए।

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