Vishnugupta
आचार्य श्री विष्णुगुप्त

भाजपा के लिए हिन्दू निरोध बन गये? निरोध शब्द का प्रयोग करना सही प्रतीत नहीं होता है। निरोध शब्द का प्रयोग करने से सभ्य लोग बचते हैं। लेकिन जब पानी सिर से उपर बहने लगता है, तब निरोध जैसे शब्द का प्रयोग करना मजबूरी बन जाती है। हिन्दुओं पर निरोध शब्द का प्रयोग बहुत ही सटीक हैं। निश्चित तौर पर आज के हिन्दू निरोध ही हो गये हैं। सिर्फ वोट देने के लिए हिन्दू हैं, वोट पाने और सरकार बनाने के बाद हिन्दुओं की स्थिति निरोध की तरह बना दी जाती है। पर्व-त्योहार मनाने का अर्थ अपनी जान गंवाना और पुलिस मुकदमा झेलना होता है। सबका साथ लेने की खुशफहमी में जिनका साथ मिलता है, उन्हीं के धर्म अधिकारों पर हिंसा और अपमान की बढ़ती विधर्मी प्रवृति खतरनाक है।

इस कसौटी पर दिल्ली की जहांगीरपुरी की घटना का वर्णन और उदाहरण जानना बहुत ही जरूरी है। जहांगीरपुरी में दिल्ली पुलिस ने हिन्दुओं को रामनवमी जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी थी। रामनवमी पूजा पर भी कई प्रकार की अप्रत्यक्ष बंदिशें लगा दी गयी थी। फिर भी जहांगीरपुरी के हिन्दुओं ने रामनवमी पूजा-अर्चना की और जुलूस भी निकालने की कोशिश की। जुलूस निकाला भी। लेकिन जुलूस को बीच रास्ते में रोक दिया गया और पुलिस वाले घेर कर खड़े हो गये। यानी की रामनवमी के जुलूस को रोक दिया गया।

अब हिन्दुओं पर पुलिस का उत्पीड़न शुरू होगा। पुलिस वाले दर्जनों और सैकड़ों लोगों पर मुकदमा दर्ज करेगी और उन्हें अपराधी की श्रेणी में खड़ी करेगी। पुलिस वाले इसका आधार यह बनायेंगे कि इन्होंने पुलिस अनुमति के बिना ही जुलूस निकाला। इस तरह का काम पुलिस वाले करते ही हैं। खासकर हिन्दुओं के मामले में पुलिस वालों की एफआईआर वाली कलम खूब चलती है, पुलिस की लाठियां खूब चलती है। देश के कोने-कोने में हिन्दू पर्व त्योहारों के जुलूसों पर पुलिस तुरंत और हिंसक लाठियां भांजती हैं। बिहार में दूर्गा पुजा विसर्जन जुलूस पर एक आईपीएस अधिकारी ने किस प्रकार से गोलियां चलवायी थी, यह भी उल्लेखनीय है, उस गोली कांड में एक हिन्दू की मृत्यु हुई थी और कई हिन्दू घायल हुए थे।

यूपी के कासगंज में तिरंगा झंडा निकालने वाले चंदन गुप्ता की हत्या विधर्मियों ने की और दंगा भी किया था पर दर्जनों हिन्दुओं को पुलिस ने जेल भेजने का कार्य किया। हर शुक्रवार को एक समुदाय के लोग बिना अनुमति के सड़कों पर नमाज पढते हैं, सड़कों को नमाजियों से पाट देते हैं। सड़कों का आवागमन रोक देते हैं। सड़कों पर पैदल चलने वाले और सड़कों पर बिना रूकावट के वाहन चलने के अधिकार का सरेआम उल्लंघन होता है। सड़कों पर नमाज पढ़ने के लिए और सड़कों को नमाजियों से पाट देने की घटनाओं पर कभी आपने पुलिस की लाठियां घूमती हुई देखी है, कभी पुलिस की एफआईआर की कलम चलते हुए देखा है आपने? कभी पुलिस यह कहकर एफआईआर करती है कि सड़कों पर नमाज पढ़ने की अनुमति नहीं ली थी, इसलिए ये अपराधी हैं।

दिल्ली के जहांगीरपुरी के हिन्दुओं की हिम्मत और बहादुरी अतुलनीय है। उनकी हिम्मत और बहादुरी की जितनी प्रशंसा की जाये, कम है। पुलिस की अनुमति नहीं मिलने और पुलिस की धमकियों के बाद भी इन्होंने जुलूस निकाला। पिछले साल हिन्दुओं के जुलूस पर विधर्मियों ने हमला किया और दंगा किया था। विधर्मियों की दंगाई मानसिकता को कुचलने की जरूरत थी, लेकिन पुलिस हिन्दुओं की धार्मिक मानसिकता को कुचल रही है। पुलिस को चाहिए था कि अपने संरक्षण में रामनवमी के जुलूस निकलवाती। अगर ऐसा पुलिस करती तो फिर जहांगीरपुरी में विधर्मियों की दंगाई मानसिकता जमींनदोज होती। हिन्दू ही नहीं बल्कि किसी धर्म के पर्व त्योहारों को मनाने या फिर पर्व-त्योहारों से संबंधित जुलूस निकालने के लिए पुलिस की अनुमति लेने की जरूरत ही क्यों होनी चाहिए?

जहांगीरपुरी में पूरी तरह से विधर्मियों की दंगाई मानसिकताएं हावी हैं और उनकी हिंसक व घृणित मानसिकताएं चरम पर है। जहांगीरपुर के दंगाई अपराध पर दिल्ली पुलिस की पूर्व कार्रवाइयां ऐसी ही स्थिति की कहानी कहती हैं और प्रमाण देती है। जहांगीरपुरी ही नहीं बल्कि दिल्ली के दर्जनों से ऐसे मुहल्ले हैं जहां पर कैराना जैसी स्थिति उत्पन्न है। यमूनापार के कई इलाकों में पर्व-त्योहारों के आयोजन करने मात्र पर हत्या होती है और पुलिस उसको आपसी रंजिश का मामाला घोषित कर रफा-दफा कर देती है। मेरे पास ऐसे कई जानकारियां हैं, जिसमें पर्व-त्योहारों के आयोजन मात्र से विधर्मियों ने हत्या और हिंसा करने जैसे हिंसक और अमानवीय करतूतों को अंजाम देने का काम किये गये हैं। जहांगीरपुरी के हिन्दुओं के लिए नरेन्द्र मोदी की सरकार सहित सभी हिन्दू संगठन भी हाथी के दांत बन गये हैं।

जहांगीरपुरी की इस लोमहर्षक घटना के लिए दोषी कौन है? दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल की सरकार है पर दिल्ली की पुलिस अरविन्द केजरीवाल के पास नहीं है। दिल्ली की पुलिस नरेन्द्र मोदी की सरकार के पास है। दिल्ली पुलिस की लगाम केन्द्रीय गृह मंत्रालय के पास होती है। यानी की दिल्ली पुलिस केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नियंत्रण में है। दिल्ली पुलिस का बॉस अमित शाह ही है। इसलिए जंहागीरपुरी की घटना के लिए नरेन्द्र मोदी और अमित शाह दोषी है।

जहांगीरपुरी की कसौटी पर देश भर के हिन्दुओं की स्थिति ऐसी ही है। पिछले कुछ सालों से हिन्दू-पर्व और त्योहारों पर विधर्मियों द्वारा हिंसा फैलाने की कार्रवाई होती रही है। इसी रामनवमी के अवसर पर पश्चिम बंगाल में कई जगहों पर पूजा-अर्चना पर प्रतिबंध लगा दिये गये, विधर्मियों के साथ पुलिस, प्रशासन और सरकार खड़ी हो गयी, पश्चिम बंगाल में दंगे भी हुए। गुजरात जो हिन्दू अस्मिता का प्रदेश कहा जाता है वहां पर भी रामनवमी के उत्सव पर मुसलमानों के हमले की खबरें स्पष्ट रूप से देखी-सुनी गयी। कहने का अर्थ ऐसा है कि देश का कोई भी प्रदेश ऐसा नहीं है, जहां पर इस रामनवमी के दिन हिन्दुओं पर हिंसा नहीं हुई है और हिन्दुओं के पर्व-त्योहार मानने के अधिकार से वंचित नहीं किये गये हैं। पर्व-त्योहार मनाने पर हिन्दुओं को गाजर-मूली की तरह मसला जाता है, काटा जाता है।

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हिन्दूवादी इसके लिए सिर्फ ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल और अशोक गहलौत तथा लालू, अखिलेश, मायावती जैसे लोगों को दोषी ठहराते हैं। पर देश की राजधानी में हिन्दुओं के साथ इस तरह की बंदिशें और उनके धार्मिक अधिकार को वे ही लोग कुचल रहे हैं यानी कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ही कुचल रहे हैं, जो हिन्दुओं के वोट पर राज कर रहे हैं। गुजरात सहित कई भाजपाई राज्यों में भी हिन्दुओं के पर्व प्रदर्शनों पर विधर्मियों की हिंसा हो रही है और हिन्दुओं अधिकारों को कुचला जा रहा है। कर्नाटक, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में जहां पर हिन्दू अस्मिता की सरकार कही जाती है, वहां पर दर्जनों हिन्दू एक्टिविस्टों की हत्याएं हुई हैं।

क्या भाजपा और नरेन्द्र मोदी के लिए हिन्दू अब एक निरोध ही हैं? भाजपाई राज्यों में भी हिन्दू पर्व-त्योहारों पर हिंसा और हिन्दू एक्टिविस्टों की लगातार बर्बर व विभत्स हिंसा, ऐसी सोच के लिए बाध्य करती है। हिन्दू भी मजबूर हैं, जिन्हें हिन्दू वीर समझते हैं, वे सेक्युलर निकल जाते हैं। अटल बिहारी की तरह नरेन्द्र मोदी सेक्युलर राजनीति के सहचर बन गये हैं। सबका साथ और सबका विकास इसका उदाहरण है। सबका साथ तो नरेन्द्र मोदी को मिलता कहां हैं? जिसका साथ मिलता है उसी के धर्म अधिकारों पर हिंसा चिंतनीय बात है। अब हिन्दुओं को इस बात पर चिंतन करने की जरूरत है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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