
Prerak Prasang: विश्वास हर रिश्ते की जड़ होती है। जब पति-पत्नी का एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते हैं तो वैवाहिक जीवन में अशांति होना तय है। इसीलिए पति-पत्नी को एक-दूसरे को हर बात बताना चाहिए ताकि दोनों के बीच भरोसा बना रहे। विश्वास का महत्व समझाने के लिए श्रीरामचरितमानस में शिव-सती का एक प्रसंग बताया गया है। श्रीरामचरित मानस के बालकांड में शिव और सती का एक प्रसंग है। जिसके अनुसार शिव और सती, अगस्त्य ऋषि के आश्रम में रामकथा सुनने गए।
सती को यह थोड़ा अजीब लगा कि श्रीराम शिव के आराध्य देव हैं। सती का ध्यान कथा में नहीं रहा और वह यह सोचतीं रहीं कि शिव जो तीनों लोकों के स्वामी हैं, वे श्रीराम की कथा सुनने के लिए क्यों आए हैं। कथा समाप्त हुई और शिव-सती वापस कैलाश पर्वत लौटने लगे। उस समय रावण ने सीता का हरण किया था और श्रीराम, सीता की खोज में भटक रहे थे। सती को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि शिव जिसे अपना आराध्य देव कहते हैं, वह एक स्त्री के वियोग में साधारण इंसान की तरह रो रहा है। सती ने शिवजी के सामने ये बात कही तो शिव ने समझाया कि यह सब श्रीराम की लीला है।
भ्रम में मत पड़ो, लेकिन सती नहीं मानी और शिवजी की बात पर विश्वास नहीं किया। सती ने श्रीराम की परीक्षा लेने की बात कही तो शिवजी ने रोका, लेकिन सती पर शिवजी की बात का कोई असर नहीं हुआ। सती, सीता जी का रूप धारण करके श्रीराम के सामने पहुंच गईं। श्रीराम ने सीता के रूप में सती को पहचान लिया और पूछा कि हे माता, आप अकेली इस घने जंगल में क्या कर रही हैं, शिवजी कहां हैं? जब श्रीराम ने सती को पहचान लिया तो वे डर गईं और चुपचाप शिव के पास लौट आईं।
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जब शिवजी ने सती से पूछा कि वह कहां गई थीं तो वह कुछ जवाब न दे सकीं। लेकिन शिव सब समझ गए थे कि जिन श्रीराम को वह अपना आराध्य देव मानते हैं, सती ने उनकी पत्नी का रूप धारण करके उनकी परीक्षा लेकर उनका अनादर किया है। इस कारण शिवजी ने मन ही मन सती का त्याग कर दिया। सती भी यह बात समझ गईं और दक्ष के यज्ञ में जाकर आत्मदाह कर लिया। इस प्रसंग से विश्वास के महत्व को समझा जा सकता है। कई बार पत्नियां पति की और पति पत्नी की बात पर विश्वास नहीं करते। इसका नतीजा यह होता है कि रिश्ते में बिखराव आ जाता है।
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