अरबिन्द शर्मा अजनवी
अरबिन्द शर्मा अजनवी

छलकते पैमाने हैं,
आँखों में तेरी,
मुझे मयक़शी का,
नशा आ रहा है।

निगाहों से कह दो,
गिरफ़्तार कर लें,
समर्पण करने को,
दिल चाहता है।

मचलते भ्रमर गुल पे,
गाते तराना,
शाख़ों को चंचल,
पवन चूमती है।

तूम्हें ढूँढती है,
तरसती निगाहें,
बहारों को जैसे,
चमन ढूँढता है।

रातें ये पूनम की,
झिलमिल सितारे,
तुम्हें देखने को है,
आतुर निगाहें।

गुज़रूँ मैं जब भी,
तुम्हारे गली से,
दीदार कारने को,
जी चाहता है।

मोहब्बत में जो भी,
सज़ा हो मुक़र्रर,
सुना दो हमें,
क़ैद हो जाए मयस्सर।

अपनी आँखों में “दिपा”
मुझे क़ैद कर लो,
अजीवन कारावास,
दिल चाहता है।

निगाहों से कह दो,
गिरफ़्तार कर लें,
समर्पण करने को,
दिल चाहता है।

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