चंचल माहौर ‘स्वर’

एक आरजू उसके संग रहने की।
हवाओं में संग उसके बहने की।
जुस्तजू इतनी सी रहे वो मेरे साथ,
आदत नहीं खुद को बदलने की।।

दर्द देने वाले भी थक गये अब तो,
आदत हो गयी अब दर्द सहने की।।

ख्वाहिशों का बोझ है इन सांसों पर,
हमने ठान ली है फिर भी चलने की।।

बेशक हो जायेगी थोड़ी देर रास्तों में,
पर जिद्द है, मंजिल तक पहुंचने की।।

कामयाबी को लाना है कदमों पर,
सोचा नहीं मैंने, रास्तों में ठहरने की।।

कुछ डर गये मेरी कोशिश देखकर,
झूठी अफवाह फैलाई मेरे मरने की।।

दोस्ती करो तो सही मेरे संग कभी,
जरूरत नहीं होगी निभाने का कहने की।
गर रहो ‘चंचल’ के साथ हर पल तुम,
फिर चाहत नहीं होगी किसी गहने की।।

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