
मैं बेचना चाहती हूँ,
बस माला के मनके।
पर यहाँ आये हैं,
सब लोग अलग-अलग मन के।।
इन्हें कहाँ खरीदने हैं,
मेरी माला के मनके।
ये निहारना चाहते हैं,
मेरे नयनों के मनके।।
कोई बस मेरी,
तस्वीर लेना चाहता है।
कोई मुझ से अपनी,
दिल की बातें कहना चाहता है।।
पर जो मैं बेच रही हूँ,
उसके ख़रीददार कम हैं।
अब इस दुनियां में,
इज्जतदार कम हैं।।
मोती माला मनका लेकर,
मिली कुंभ में अबकी बार।
अपने तीखे नैन-नक्स से,
वायरल है सरे बाजार।।
जादू है नैनन में जिसकी,
रूप सजीली पाई नार।
घूम-घूम कर माला बेचे,
शौक नहीं वो है लाचार ।।
पीछे-पीछे मीडिया घूमे,
फैंस यहां इसके भरमार।
अधनंगे जो रील बनाते,
कुछ तो सीखो इनसे यार।।
गरीब यहाँ मेहनत करती,
मुफ्त नहीं खाती बेकार।
तुम भी जरा मेहनत कर लो,
कर्मों पर तुम करो विचार।।
– पवन कुमार सरजी
इसे भी पढ़ें: कहाँ पर बोलना है
इसे भी पढ़ें: ना तुझे पता, ना मुझे पता