
मैं नदी-नाल का केवट हूँ,
तुम भवसागर के मालिक हो।
मैं तो लहरों से लड़ता रहा
तुम पार उतरने वाले हो।
मेरी नैया डगमग डोले
तेरी कृपा तो संबल हो।
बस एक बार तुम हाथ बढ़ा दो
मैं भी पार निकल जाऊँ।
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