Pisanhari ki Madhiya: मध्य प्रदेश के जबलपुर की छोटी-सी पहाड़ी पर स्थित पिसनहारी की मढ़िया (Pisanhari ki Madhiya) केवल एक जैन मंदिर नहीं, बल्कि श्रद्धा और मेहनत का ऐसा स्मारक है, जो हर आने वाले को प्रेरणा देता है। इसकी कहानी एक गरीब विधवा महिला की है, जिसने अपनी चक्की की कमाई से इस अद्भुत मंदिर का निर्माण किया।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, 15वीं शताब्दी की बात है, जबलपुर के पास एक पहाड़ी पर एक गुफा में सिद्ध बाबा का निवास था। उसी क्षेत्र में रहने वाली एक गरीब विधवा महिला अपने गुजारे के लिए घर-घर जाकर आटा पीसती थी। एक दिन, वह बाबा के पास अपनी नि:संतानता का दुख लेकर पहुँची। बाबा ने उसे कहा, “यदि तुम भगवान की भक्ति में समर्पित होकर एक मंदिर बनवाओगी, तो तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी।”

हालाँकि वह गरीब थी, लेकिन उसका मन भगवान की सेवा के लिए समर्पित था। उसने बाबा की बात को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। उसने अपनी चक्की से कमाए पैसे जमा करने शुरू कर दिए। उसके पास न तो पर्याप्त धन था, न ही कोई मददगार। फिर भी, उसने अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प से पहाड़ी की जमीन को समतल करना शुरू किया। महिला ने कई वर्षों तक आटा पीस-पीसकर जो भी पैसे बचाए, उन्हें मंदिर निर्माण में लगा दिया। वह मजदूरों के साथ खुद भी दिन-रात ईंटें ढोती और मिट्टी तैयार करती। मंदिर बनने में कई साल लगे, लेकिन जब यह तैयार हुआ, तो उसकी भव्यता सबको चकित कर गई।

जब मंदिर के शिखर पर मुकुट लगाने की बारी आई, तो महिला के पास स्वर्ण कलश के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में उसने अपनी चक्की के दोनों पाट शिखर में लगवा दिए। यही पाट उसकी जीवन भर की कमाई और उसकी पहचान थे। लेकिन उसने उन्हें भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया। महिला के इस अद्भुत समर्पण के कारण मंदिर का नाम “पिसनहारी की मढ़िया” पड़ा। यह नाम उस महिला की स्मृति को संजोता है, जिसने अपनी मेहनत और भक्ति से इसे अमर कर दिया।

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आज, यह मंदिर जैन तीर्थस्थलों में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। यहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं और उस महिला के समर्पण को नमन करते हैं। पहाड़ी पर बने इस मंदिर तक पहुँचने के लिए 300 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं, जो एक साधक के दृढ़ विश्वास और तप का प्रतीक हैं। यह स्थान केवल धार्मिक महत्व तक सीमित नहीं है। यहाँ जैन गुरुकुल की स्थापना की थी, जहाँ आध्यात्म और आधुनिक शिक्षा का अद्भुत संगम देखने को मिलता था। यहीं पर सुभाष चंद्र बोस और वर्णी महाराज ने आजादी के आंदोलन के दौरान देश को जागरूक करने के लिए भाषण दिए।

आज यह मंदिर जबलपुर शहर से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ आने वाले लोग न केवल मंदिर की भव्यता और शांत वातावरण का अनुभव करते हैं, बल्कि उस महिला की कहानी से प्रेरणा भी लेते हैं, जिसने अपने जीवन को एक उच्च उद्देश्य के लिए समर्पित कर दिया। पिसनहारी की मढ़िया सिखाती है कि सच्ची भक्ति और मेहनत से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि साधारण इंसान भी असाधारण कार्य कर सकता है। बस आवश्यकता है, दृढ़ संकल्प और समर्पण की।

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