संजय तिवारी
संजय तिवारी

उत्तर-मध्य अफगानिस्तान में स्थित एक घाटी है पंजशीर। यहां अभी भी असुर कबायली लोग काबिज नहीं हो सके हैं। यहां से तालिबानियों के विरुद्ध बड़ा मोर्चा भी खुल गया है। यह राष्ट्रीय राजधानी काबुल से 150 किमी उत्तर में हिन्दु कुश पर्वतों के पास स्थित है। यह वादी पंजशीर प्रान्त में आती है और इसमें से प्रसिद्ध पंजशीर नदी गुज़रती है। यहाँ के आधुनिक बाशिंदों में अफ़ग़ानिस्तान का सबसे बड़ा ताजिक लोगों का समुदाय भी शामिल है। वास्तव में आज का जो पंजशीर है इस नाम का सीधा संबंध महाभारत काल के पाँच पांडवों से है। हिंदुकुश के इस केंद्र को बहुत सलीके से समझने की जरूरत है। सारे नाम बदल देने भर से मूल इतिहास नहीं बदल सकता। जब हिंदुकुश जैसा विशुद्ध सनातन वैदिक नाम आज भी वैसे ही है तो स्वाभाविक है कि यह क्षेत्र महान सनातन वैदिक सभ्यता का ही क्षेत्र है।

यह तो विश्व स्वीकार करता है कि अफगानिस्‍तान का महाभारत के साथ काफी गहरा रिश्‍ता है। पेशावर घाटी और काबुल नदी घाटी तक महाभारत का इतिहास फैला हुआ है। नवंबर 2013 में एशिया और अफ्रीका की तरफ से हुई एक स्‍टडी में यह बात साबित हुई थी कि अफगानिस्‍तान का हजारों साल पहले महाभारत से गहरा र‍िश्‍ता रहा है। यही नहीं अफगान‍िस्‍तान के ज‍िस ह‍िस्‍से को हम आज कंधार के नाम से जानते हैं वह कभी गंधार साम्राज्‍य के नाम से जाना जाता था। गंधार शब्‍द का जिक्र ऋग्‍वेद, उत्‍तर रामायण और महाभारत में भी मिलता है। गंधार का एक बड़ा हिस्‍सा उत्‍तरी पाकिस्‍तान और कुछ हिस्‍सा पूर्वी अफगानिस्‍तान में है। गंधार साम्राज्‍य पोथोहार, पेशावर घाटी और काबुल नदी घाटी तक फैला था।

महाभारत काल में ज‍िक्र म‍िलता है क‍ि गंधार पर आज से 5500 साल पहले राजा सुबाला ने राज किया था। उनकी बेटी का नाम गंधारी था, जिनकी शादी हस्तिनापुर के राजा धृतराष्‍ट्र से हुई थी। गंधारी के भाई शकुनी थे। राजा सुबाला की मृत्‍यु के बाद गंधार साम्राज्‍य की सत्‍ता शकुनी ने संभाली। यही नहीं मान्‍यता तो यह भी है क‍ि गंधार में श‍िवजी की पूजा की जाती थी। इसका तात्‍पर्य गंधार शब्‍द से माना जाता है क्‍योंक‍ि गंधार शब्‍द गंध से बना है। गंध यानी क‍ि खुशबू और गंधार का पूरा शाब्दिक अर्थ खुशबू की धरती।

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मान्‍यता है कि काबुल नदी के तट पर लोग रहा करते थे। उत्‍तर-पश्चिम पंजाब भी किसी समय में गंधार का हिस्‍सा थे। कई और शोध पत्रों में इस बात की पुष्टि की गई है कि नॉर्थ-वेस्‍ट पंजाब, ईरान, भारत और सेंट्रल एशिया से संपर्क का रास्‍ता था। महाभारतकाल में अफगान‍िस्‍तान का कंधार जो क‍ि गंधार साम्राज्‍य था। यह काफी शक्तिशाली साम्राज्‍य था। मान्‍यता है क‍ि 18 द‍िनों तक चले महायुद्ध महाभारत में पांडवों से हार के बाद कौरव वंश के कई लोग गंधार साम्राज्‍य में रहने लगे थे। बाद में वे धीर-धीरे इराक और सऊदी अरब में चले गए। बाद में गंधार पर मौर्य साम्राज्‍य के राजाओं का राज हो गया। इसके बाद फिर मुगलों का हमला हुआ। मोहम्‍मद गजनी ने भी यहां पर हमला किया। गजनी ने दसवीं सदी में इस पर कब्‍जा कर लिया।

‘पंजशीर’ वास्तव में ‘पंज शेर’ (पांच शेर) कहने का फ़ारसी लहजा है। फ़ारसी में ‘शेर’ का मतलब ‘बाघ’ की बजाए ‘सिंह’ (बबर शेर) होता है। इस वादी का नाम पाँच पांडव भाईयों के सम्मान में रखा गया है। आधुनिक भारत विरोधी इतिहासकार और पश्चिमी पिछलग्गू इस कहानी को अत्यंत गंदे ढंग से प्रस्तुत करते हैं। ये पांच पांडवों की बजाय किन्ही ऐसे पाँच भाइयों की कहानी लिखते हैं जिन्होंने 10वीं शताब्दी ईसवीं में महमूद ग़ज़नी ले लिए यहाँ एक दुर्गम नदी पर बाँध डाला था। पश्चिमी इतिहासकारों की यह कहानी बिल्कुल झूठी है। प्रख्यात इतिहासकार प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी कहते हैं कि पश्चिम के इतिहासकारों को अब अपनी इस झूठी कथा का गान बंद कर देना चाहिए क्योंकि अब तो वहां की एक गुफा में टाइम जोन में फंसा महाभारत कालीन विमान खुद ही गवाही दे रहा है।

यह वादी पुराने ज़माने से यहाँ मिलने वाले रत्नों के लिए जानी जाती है। मध्यकाल में यहाँ चांदी निकाला जाता था जिस से सफ़ारी साम्राज्य और सामानी साम्राज्य अपने सिक्के गढ़ा करते थे। आज भी इस क्षेत्र में पन्ना उत्पादन का बड़ा केंद्र बनने की सम्भावनाएँ हैं। 1985 तक यहाँ बहुत ही बेहतरीन कोटि के 190 कैरट (30 ग्राम) तक के पन्ना मिल चुके थे। पंजशीर घाटी को जीतना तालिबान के मुश्किल रहा है। यह एक प्रांत रहा है जहां पर अभी तक तालिबान अपना कब्जा नहीं कर पाया है। खुद को राष्ट्रपति घोषित कर चुके अमरुल्ला सालेह भी यहीं से आते हैं। कहा जा रहा है कि तालिबान के खिलाफ प्रतिरोध के लिए यह प्रांत एक गढ़ के रूप में काम करेगा। तालिबान का सामना करने के लिए एक बार फिर याद आने लगी उसी समूह यानी पंजशीर के उत्तरी गठबंधन की जिसने 1970 और 80 के दशक में देश की ढाल का काम किया था। यही उत्तरी गठबंधन एक बार फिर सामने आता दिख रहा है। पहले उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने जंग जारी रहने का ऐलान किया। इसके बाद पंजशीर घाटी से अहमद मसूद ने भी ललकार लगाई है।

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पंजशीर घाटी काबुल के उत्तर में हिंदू कुश में स्थित है। यह क्षेत्र 1980 के दशक में सोवियत संघ और फिर 1990 के दशक में तालिबान के खिलाफ प्रतिरोध का गढ़ था। इस घाटी में डेढ़ लाख से अधिक लोग रहते हैं। अमरुल्लाह सालेह का जन्म पंजशीर प्रांत में हुआ था और वह वहीं ट्रेन हुए हैं। इस क्षेत्र को कभी भी कोई जीत न सका। न सोवियत संघ, न अमेरिका और न तालिबान इस क्षेत्र पर कभी नियंत्रण कर सका। तालिबान ने अब तक पंजशीर पर हमला नहीं किया है। सामरिक मामलों के जानकार मानते हैं कि पंजशीर घाटी ऐसी जगह पर है जो इसे प्राकृतिक किला बनाता है और इसे हमला न होने का एक प्रमुख कारण बताया जाता है।

इस घाटी को नॉर्दर्न अलायंस भी कहा जाता है। यह अलायंस 1996 से लेकर 2001 तक काबुल पर तालिबान शासन का विरोध करने वाले विद्रोही समूहों का गठबंधन था। एकबार फिर यह अलायंस तालिबान के खिलाफ प्रतिरोध करने के लिए सक्रिय हो चुका है। कहा जा रहा है कि तालिबान की खिलाफत करने वाले सालेह भी इसी घाटी में हैं। अगर ये कहा जाए कि अफगानिस्तान में संपन्नता के मामले में कई देशों को पीछे छोड़ सकता है, तो शायद कोई इस बात पर विश्वास नहीं करेगा। लेकिन, अगर तथ्यों की बात की जाए, तो अफगानिस्तान साउथ एथिया का सबसे अमीर देश है। दरअसल, अफगानिस्तान में खनिज पदार्थों (Minerals) जैसे लोहा, कॉपर, कोबाल्ट, सोना के अलावा रेयर अर्थ एलिमेंट में गिने जाने वाले लिथियम (lithium in afghanistan) का भंडार है।

2010 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, इन खनिज पदार्थों की संभावित कीमत एक खरब डॉलर से ज्यादा है। लेकिन, 2017 की अफगान सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक ये तीन खरब डॉलर तक पहुंच सकती है। अफगानिस्तान में पाए जाने वाले लिथियम समेत कई खनिज पदाथों का इस्तेमाल ग्रीन एनर्जी (Green Energy) के लिए बड़ी तादात में होता है, जो इसकी कीमत को और ज्यादा बढ़ा देता है। अफगानिस्तान में पाए जाने वाले लिथियम समेत कई खनिज पदाथों का इस्तेमाल ग्रीन एनर्जी के लिए बड़ी तादात में होता है।

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बीते कई दशकों से युद्ध से जूझ रहे अफगानिस्तान में खनिजों के दोहन के लिए बुनियादी ढांचे की कमी और अस्थिर हालातों की वजह से इन धातुओं को छुआ नहीं जा सका है। अफगानिस्तान के लिथियम भंडार (afghanistan lithium) को लेकर कहा जाता है कि यह लिथियम के सबसे बड़े उत्पादक बोल्विया के बराबर हो सकता है। अब यह आशंका है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद खनिज भंडार के इस खजाने पर उसका कब्जा होना तय है। तालिबान के कब्जे में रहने पर शायद ही अफगानिस्तान कभी अपनी गरीबी को मात दे सकेगा। अमेरिका और अन्य देश भले ही इस्लामिक आतंकी संगठन तालिबान से संबंध न रखें लेकिन, तालिबान के इस खनिज भंडार पर चीन, रूस और पाकिस्तान जैसे देशों की नजर बनी हुई है। चीन इस आतंकी संगठन को अफगानिस्तान में निवेश, हथियारों और अन्य चीजों के जरिये इन खनिज भंडारों पर कब्जा जमाने की कोशिश कर सकता है। चीन की इस साजिश को समझिए।
क्रमशः

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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