
नई दिल्ली: एक ऐसा नाम जो आतंकवादी ओसामा बिन लादेन, परमाणु हथियार और जिन्नों को एक ही कमरे में ला देता है- वह है लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी, जो इस समय पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज़ पब्लिक रिलेशंस (ISPR) के महानिदेशक हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव के चलते जनरल चौधरी को मीडिया में अधिक बार सामने आना पड़ रहा है, जिससे उनके परिवार पर भी ध्यान केंद्रित हो गया है।
जनरल चौधरी के पिता सुल्तान बशीरुद्दीन महमूद पाकिस्तान के एक प्रतिष्ठित परमाणु वैज्ञानिक रहे हैं, जिन्हें कभी पाक सरकार ने सम्मानित किया था, लेकिन उनके अल-कायदा जैसे आतंकी संगठनों से कथित संपर्कों के चलते बाद में उन्हें संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंधित कर दिया।
परमाणु विज्ञान में योगदान
सुल्तान महमूद ने पाकिस्तान एटॉमिक एनर्जी कमीशन (PAEC) में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान के परमाणु ढांचे को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने यूरेनियम संवर्धन संयंत्रों का निर्माण किया, रिएक्टर डिज़ाइन तैयार किए। पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को यूरेनियम आधारित से प्लूटोनियम आधारित हथियारों में बदलने की दिशा में काम किया। ये सभी कदम पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम की रीढ़ माने जाते हैं।
सेवानिवृत्ति के बाद बढ़ती चिंताएं
PAEC से रिटायर होने के बाद, महमूद ने उम्मा तामीर-ए-नौ (UTN) एक संगठन की स्थापना की। इस संगठन ने तालिबान शासित अफगानिस्तान में स्कूल और आधारभूत ढांचा विकसित करने का दावा किया, लेकिन अमेरिकी और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों ने पाया कि यह संगठन आतंकी नेटवर्कों से गहरे तौर पर जुड़ा हुआ था।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 2001 में, महमूद और उनके सहयोगी चौधरी अब्दुल मजीद ने ओसामा बिन लादेन और अयमान अल-जवाहिरी से मुलाकात की, जो 9/11 हमलों से कुछ ही सप्ताह पहले हुई थी। हालांकि कोई ठोस सबूत नहीं मिला कि उन्होंने परमाणु तकनीक दी थी, फिर भी वाशिंगटन में खलबली मच गई और पाक अधिकारियों ने उन्हें हिरासत में लिया व पूछताछ की।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट का दावा
UTN ने ओसामा बिन लादेन और तालिबान को रासायनिक, जैविक और परमाणु हथियारों की जानकारी दी। बशीरुद्दीन ने बिन लादेन और अल-कायदा नेताओं से मुलाकात की और परमाणु हथियारों पर चर्चा की। एक बैठक में बिन लादेन के एक सहयोगी ने दावा किया कि उसके पास परमाणु सामग्री है और वह हथियार बनाने की तकनीक जानना चाहता है। बशीरुद्दीन ने उसे इस प्रक्रिया की जानकारी दी। ISI ने बाद में महमूद को यह कहते हुए रिहा कर दिया कि वह अकेले परमाणु हथियार नहीं बना सकते थे।
सम्मान और विरोधाभास
महमूद ने पाकिस्तान और ब्रिटेन में शिक्षा ली थी। उन्हें पाकिस्तान का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान सितारा-ए-इम्तियाज़ दिया गया था। लेकिन बाद में उन्होंने प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की खुलकर आलोचना भी की।
जिन्नों की ऊर्जा पर विश्वास
महमूद ने वैज्ञानिक लेखों में यह दावा किया कि जिन्न, जो इस्लामी परंपरा में एक रहस्यमयी प्रजाति माने जाते हैं, धरती की ऊर्जा समस्या का समाधान हो सकते हैं। उनका मानना था कि जिन्न “बिना धुएं की आग” से बने हैं और उन्हें ऊर्जा स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
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लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी का प्रोफाइल
अहमद शरीफ चौधरी ने पाकिस्तान सेना के इलेक्ट्रिकल एंड मैकेनिकल इंजीनियरिंग कोर में ट्रेनिंग ली। उन्होंने मिलिटरी ऑपरेशंस डायरेक्टोरेट और डिफेंस साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑर्गनाइजेशन (DESTO) में सेवाएं दीं। DESTO वह संस्था है जिसे 1998 में परमाणु परीक्षणों के बाद अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा था।
‘The Man from Pakistan’ किताब के मुताबिक
पत्रकारों डगलस फ्रैंट्ज और कैथरीन कॉलिन्स की किताब “The Man from Pakistan” में दावा किया गया है कि महमूद ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को पूरे मुस्लिम समुदाय की संपत्ति माना। उनका मानना था कि ये हथियार उन इस्लामी देशों के साथ साझा किए जाने चाहिए, जो पश्चिम से संघर्ष में हैं। किताब में 2001 की कंधार मीटिंग का उल्लेख है, जिसमें महमूद और मजीद ने अल-कायदा को तकनीकी सलाह दी थी।
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