Sanjay Tiwari
संजय तिवारी

यह परमपूज्य है। दिव्य है। सुंदर है। पृथ्वी पर इससे ऊंचे पर्वत हैं किंतु इस पर्वत पर कोई पर्वतारोही आज तक नहीं जा सका। यह आदि पुरुष भगवान शिव और आदिशक्ति मां पार्वती का निवास स्थल है। इस कैलाश की अवस्थापना में एक रहस्यमयी गुफा आजकल आधुनिक विज्ञान के लिए बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने आई है। आइए इस पर तर्क सम्मत चर्चा करते हैं। इस पर्वत को सामान्य पहाड़ समझने की भूल नहीं हो,क्योंकि यह कोई पर्वत भर नहीं है। यही वह स्थल है जहां से यह सृष्टि संचालित हो रही है। इसके बारे में गोस्वामी तुलसीदास जी लिख चुके हैं-

परम रम्य गिरिबर कैलासू।
सदा जहां सिव उमा निवासू।।

सामान्य रूप से किसी को भी यह जिज्ञासा हो सकती है कि परमरम्य गिरिवर कैलाश में ऐसा क्या है? आखिर भगवान शिव ने अपनी योगमाया महाशक्ति के साथ अपना निवास यहीं क्यों बनाया? क्या आज भी भगवान शिव अपनी योग माया के साथ यहीं रहते हैं। गोस्वामी जी ने जिस रूप में लिखा है वह तो वर्तमान ही लगता है। ऐसी अनगिनत ख़बरें भी आती रहती हैं कैलाश को लेकर। अनेक वैज्ञानिक चेष्टाएँ भी हो चुकी हैं। कैलाश की एक ऐसी गुफा की चर्चा आजकल बहुत है जहां का परिवेश पृथ्वी के किसी भी गुण से अलग है। उस गुफा के बारे में भी चर्चा करेंगे। पहले बात करते हैं कि कैलाश का रहस्य जान सकने की योग्यता किसी मनुष्य में है भी या नहीं। गोस्वामी जी के अनुसार तो यहां कौन पहुच सकता है , यह निर्धारण भी सुनिश्चित है-

सिद्ध तपोधन जोगिजन सुर
किंनर मुनिबृंद।
बसहिं तहां सुकृति सकल
सेवहिं सिव सुखकंद।।

Mount Kailash

कोई सामान्य मनुष्य अथवा जीव कैलाश पर जा ही नहीं सकता

हरि हर बिमुख धर्म रति नाहीं।
ते नर तहं सपनेहुं नहिं जाहीं।।

महर्षि याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज मुनि से कहते हैं कि – हे मुनीश्वर भरद्वाज जी! कैलाश पर्वत अत्यंत रमणीय और पर्वतों में श्रेष्ठ है जहां सदा शिव जी अपनी योगमाया उमा के साथ निवास करते हैं-

सदा जहां सिव उमा निवासू।
गोस्वामी जी जब महर्षि याज्ञवल्क्य और भारद्वाज प्रसंग कहते हैं तो वहां भी इस प्रकार लिखते हैं मानो प्रत्यक्ष अनुभूति होती है-
भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा।
बसहिं- अर्थात् यदि हममें ऐसा सामर्थ्य है, पुण्य कर्म किए हैं, प्रभु कृपा है, तो अनुभव कर सकते हैं कि आज भी भारद्वाज मुनि प्रयागराज में हैं।
उसी प्रकार यहां-
सदा जहां सिव उमा निवासू,
बसहिं तहां सुकृति सकल
सेवहिं सिव सुखकंद।।

बसहिं,सेवहिं अर्थात् भूतकाल की बात नहीं बल्कि इसे वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अनुभव करें, इससे कैलाश भी अनुभूति में आने लगता है। आज यह प्रसंग लिखने का कारण भी समझ में आ रहा इसलिए इस आलेख को स्वरूप देने का मन हुआ। श्री मद रामचरित मानस का सीधा संबंध मनुष्य के मन, मस्तिष्क से ही है। इसलिए यह एक सामान्य पुस्तक नहीं, बल्कि हमारे मस्तिष्क की अवस्था है। इस अवस्था में पहुँच कर ही पता चल पाता है कि मेरे ही अंदर पुण्य, पाप में द्वंद्व चल रहा है, मेरे ही अंदर मोह रूपी रावण है, और मेरे ही अंदर आनंद के सिंधु राम जी हैं, सुखों के घनिभूत, सुखघन, सत् चित् आनन्द घन (राम जी) शिव जी हैं (रामः एव ईश्वरः)।

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हमारे शरीर स्थित ब्रह्मरंध्र में ही सुखों के मूल है, कल्याण स्वरूप के निवास है, परन्तु वहां सिद्ध पुरुष, परम तपस्वी, योगीजन ही स्थित हो पाते है। यदि गोस्वामी जी कैलाश के जिज्ञासुओं की व्याख्या दे रहे हैं तो उसको समझना बहुत आवश्यक है-

बसहिं तहां सुकृति सकल सेवहिं सिव सुखकंद।

यहां सुकृति (पुण्य कर्म)सकल , का तात्पर्य है कि केवल वन में रहकर तपस्या करने, योग, जप तप करने ही नहीं है बल्कि हम गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए भी यदि अपने वर्णाश्रम धर्म का पालन कर रहे हैं। जैसे ब्राह्मण वंश में जन्म लिए हैं तो उस विहित धर्म का पालन कर रहे हैं।

सोचिअ बिप्र जो बेद बिहीना
तजि निज धरम बिषय लयलीना।।

यदि क्षत्रिय कुल में जन्म लिए हैं तो उसी में संतुष्ट रहकर क्षात्रधर्म का पालन कर रहे हैं।

सोचिअ नृपति जो नीति न जाना।
जेहिं न प्रजा प्रिय प्रान समाना।।

यदि वैश्य है तो भी अपने धर्म का पालन कर रहे हैं-
सोचिअ बयस कृपन धनवानू।
जो न अतिथि सिव भगति सुजानू।।

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यदि शूद्र हैं तो भी संतुष्टि के साथ प्रेम पूर्वक अपने धर्म (सेवा धर्म, )का पालन कर रहे हैं। स्त्री हैं तो अपने पातिव्रत धर्म का पालन कर रही हैं, ब्रह्मचर्य धर्म वाले हैं तो अपने धर्म का पालन कर रहे हैं। इन स्वधर्म का पालन करते हुए श्री हरि और शिव जी का भजन स्मरण करते हैं, ऐसे पुण्यात्मा को कैलाश पर्वत पर अर्थात् शिव जी के धाम में निवास करने, शिव जी के सेवा करने का अवसर मिलता है।

सिद्ध तपोधन जोगिजन
सुर किंनर मुनिबृंद।
बसहिं तहां सुकृति सकल
सेवहिं सिव सुखकंद।।

अर्थात् शिव जी के निकट जो भूत प्रेत पिशाच आदि जो अशुभ भाषित होते हैं, वास्तव में बड़े ही पुण्यात्मा , सिद्धि प्राप्त, परम तपस्वी, योगी जन हैं। अब चर्चा उस गुफा की-

कैलाश पर्वत के निचले हिस्से में एक आदिकालीन गुफा है जो सैकड़ों मील लंबी है, कहा जाता है कि प्राचीन समय में योगियों ने वहां समाधि ली थी और ध्यान का अभ्यास किया था। गुफा की सौ मीटर की गहराई के भीतर कई मानव हड्डियां मिली हैं। गुफा के प्रवेश द्वार पर आप कुछ मदहोश करने वाला संगीत सुन सकते हैं, जिसकी तीव्रता बढ़ जाती है, जब आप और अंदर जाते हैं,यह तबले, डमरू, युद्ध के सींग से युक्त किसी प्रकार की आवाज़ है। ध्वनि के स्रोत अभी तक नहीं मिले हैं। आश्चर्यजनक रूप से गुफा के अंदर ऑक्सीजन का स्तर बाहर की तुलना में बेहतर है और इसमें एक विदेशी गंध है। गुफा के अंदर का तापमान किसी भी अन्य गुफा की तरह बढ़ जाता है। इस तरह से तापमान असहनीय हो जाता है, जिससे इंसान गुफा के ज्यादा अन्दर नहीं जा सकता।

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अंदर जाते ही आपके शरीर में एक अजीब सा कंपन महसूस होता है। आपकी सभी इंद्रियां असामान्य रूप से काम करना शुरू कर देती हैं। यदि आपकी आंखें बंद हैं तो आपको अजीब चीजें दिखती हैं। भारहीनता जैसी अनुभूति होती है, मानो गुरुत्वाकर्षण कम हो रहा हो। गुफा की विचित्रता के लिए स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिए बहुत सारे शोध किए गए हैं, लेकिन फिर भी कोई नतीजा नहीं निकला है। गुफा के अंदर गर्मी और चुंबकत्व के कारण अंदर भेजे गए सभी प्रोब, रोबोट, ड्रोन कुछ दूर से आगे नहीं जा सकते हैं। गुफा में जाने वाले इंसान का जीवन अजीब तरह से प्रभावित होता है, इसलिए प्रवेश द्वार को छलावरण रॉक दरवाजे के साथ सील कर दिया गया है, लेकिन शुरुआती तस्वीरें उपलब्ध हैं, कैलाश भारत में नहीं है, लेकिन फिर भी यहां के लोग इससे जुड़े रहते हैं, यह सबसे बड़े अनसुलझे रहस्यों में से एक है और अच्छी तरह से गुप्त रखा गया है।

।।ॐ नमः पार्वते पतये हर हर महादेव।।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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