प्रदीप तिवारी

लखनऊ: सनातन संस्कृति शाश्वत है। भारत के स्वाधीनता संग्राम के बीच इस महान संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के को आंदोलन गीता प्रेस के माध्यम से भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने चलाया ठीक वैसा ही आंदोलन आज भारत संस्कृति न्यास और पत्रिका संस्कृति पर्व के माध्यम से संजय तिवारी चला रहे हैं। इस समय यह पत्रिका भारतीय सनातन मूल्यों की प्रतिनिधि के रूप में निरंतर गतिशील है। सनातन मूल्यों के एक एक अंश को लेकर संस्कृति पर्व के सभी अंक विशेषांक के रूप में प्रकाशित हो रहे हैं। सनातन विश्व को केंद्रित कर इस पत्रिका का ताजा अंक इसी जुलाई में प्रकाशित हुआ है।

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इससे पहले शक्ति अंक, ज्योति अंक, कुम्भ अंक, संस्कार अंक, परिवार अंक, महामना अंक, अयोध्या अंक, मुगल- मराठा अंक, ईश्वर चंद्र विद्यासागर और सनातन विश्व जैसे अत्यंत महत्व के विषयों पर विशेषांक प्रकाशित कर संस्कृति पर्व ने एक ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया है जो सनातन संस्कृति की पुनर्स्थापना में मील का पत्थर है।

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निश्चय ही गीता प्रेस के बाद यह दूसरा ऐसा प्रकल्प है जो सनातन संस्कृति के लिए निरंतर क्रियाशील है। संस्कृति पर्व प्रकाशन के माध्यम से भी बहुत महत्व के कार्य हो रहे हैं। हिंदवी स्वराज्य, श्री हनुमान शतक और मारवाड़ी भाषा मे सुंदरकांड जैसे ग्रंथों का प्रकाशन किया जा चुका है।

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संस्कृति पर्व पत्रिका का ताजा सनातन विश्व तो सनातन में आस्था रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए किसी धरोहर से अधिक महत्व का है। इस अंक में विविध आलेखों और आवरण कथाओं के माध्यम से यह स्थापना दी गयी है कि पृथ्वी पर यदि कहीं भी मनुष्य निवास कर रहा है तो उसके मूल में सनातन आस्था और जीवन संस्कृति ही रही है।

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पत्रिका में ही संपादक की एक टिप्पणी इस भावना को बड़े सलीके से स्थापना देती है- धर्म विशाल समुद्र है और पंथ, समुद्र में समाने वाली नदियाँ। सनातन ही सार है, सनातन ही समुद्र है, सनातन ही शाश्वत है। हर काल, हर भेद, हर युग, हर बंधन से, हर व्याख्या से बहुत ऊपर। चिर शाश्वत सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के अलावा अन्य सभी पंथों, सम्प्रदायों, मजहबों का जन्मदाता, प्रतिपादित करने वाला कोई न कोई व्यक्ति रहा है। सभी सम्प्रदायों, पंथों की कोई न कोई एक विशेष कोई न कोई पुस्तक है, जिसका अनुसरण इनके अनुयायियों के लिए अनिवार्य किया गया है। सनातन वैदिक हिदू धर्म के लिए सृष्टि के कण कण में परमशक्ति नारायण की उपस्थिति है। सूर्य, चन्द्र, धरती, नदियाँ, पहाड़, वन, पशु, पक्षी यानि प्रकृति का जड़ अथवा चेतन कोई कण ऐसा नहीं है जहां सनातन ईश्वर का निवास नहीं मानता समझता हो।

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संसार में धर्म केवल एक ही है जो शाश्वत है सनातन है। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से जो चला आ रहा है, उसी का नाम सनातन है। इसके अतिरिक्त सब पन्थ, मजहब, रिलीजन मात्र है। श्रुति अर्थात वेद, स्मृति, अरण्यक,उपनिषद, श्रीमदभागवत गीता, रामायण,पुराण, महाभारत आदि विशुद्ध अध्यात्मिक और वैज्ञानिक ग्रंथ हैं। वेद पश्चिमी धर्म की परिभाषा तथा पंथ, संप्रदाय के विश्वास तथा दर्शन से परे शाश्वत सत्य ज्ञान के सागर हैं वेद। वेदों की रचना मानव को सत्य ज्ञान से परिचित कराने के लिए की गई है। वेद पंथ, संप्रदाय, मजहब, रिलीजन आदि का प्रतिनिधित्व न करके मानव जाति के कल्याण के लिए हैं।

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