Lucknow News: बख्शी का तालाब स्थित चंद्रभानु गुप्त कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय (Chandrabhanu Gupta Post Graduate College of Agriculture) के कृषि कीट विज्ञान विभाग द्वारा छात्र- छात्राओं को जैविक विधि द्वारा कीट प्रबंधन की ट्रेनिंग दी जा रही है। जिससे रसायन से होने वाले खतरों से बचा जा सके। इस अवसर पर कृषि महाविद्यालय के सहा-प्राध्यापक डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह ने गोभी वर्गीय फसलों, टमाटर, मटर एवं पत्ती चूसक कीटों के जैविक प्रबंधन पर छात्र -छात्राओं को प्रशिक्षित किया गया।

छात्रों को विभिन्न प्रकार के ट्रैप जिसमें स्टिकी ट्रैप जिन्हें हम चिपचिपी ट्रैप के नाम से भी जानते हैं प्रमुख रूप से सफेद मक्खी, मांहू, गोभी की जड़ मक्खी गोभी की तितली आदि कीटों को प्रबंधित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसमें प्रमुख रूप से नीले चिपचिपे ट्रैप तैयार किए जाते हैं। इसमें किसी भी प्रकार के केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता। यह ट्रैप खेत में जगह जगह पर एक कार्ड के ऊपर चिपचिपा पदार्थ लगाकर लगा दिए जाते हैं, जिससे कीट एकत्र हो जाते हैं।

प्रमुख रूप से आलू, पत्ता गोभी फूलगोभी, ब्रोकली एवं टमाटर आदि फसलों में लगने वाले कीटों को प्रबंधित करने के फीरोमोन ट्रैप का प्रयोग करते हैं। प्रमुख रूप से इस प्रकार के ट्रैप्स के द्वारा नर कीटो को पकड़ने मे प्रयोग में लाया जाता है। जिसे ढक्कन के बीच में लटका दिया जाता है और बोतल का छेद बंद कर दिया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मक्खियां अंदर आ जाएं। प्रमुख रूप से जहरीले कीटनाशकों के प्रयोग कम करने के लिए तथा प्रौढ़ मांथ को पकड़ने के लिए मौसमी फसलें जिसमें मटर, बैंगन, टमाटर, पत्ता गोभी आदि फसलों में लगने वाले कीड़ों को प्रबंधित करने के लिए इसका प्रयोग किया जा रहा है इसमें लगभग 6 से 7 ट्रैप प्रति एकड़ लगाकर कीटों को प्रबंधित किया जाता है।

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महाविद्यालय के बीएससी (ऑनर्स) कृषि सेमेस्टर तृतीय छात्र -छात्राओं को प्रमुख रूप से ट्रैप के प्रयोग करने के तरीके तथा इनके लाभों पर चर्चा की गई डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि आज के परिवेश में हानिकारक कीटनाशकों के अनुप्रयोग को कम करने के लिए ट्रैप बहुत लाभकारी है आर्थिक रूप से यह कम खर्चीली होते हैं और सही तरीके से इनका इस्तेमाल किया जाए, तो कीटों के स्तर की संख्या कम हो जाती है तथा रसायन के द्वारा हो रहे खर्च को कम करने के लिए और फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए अधिक प्रभावी हैं।

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डॉ सिंह ने बताया कि नर् कीटों को बेहतर तरीके से फंसाने के लिए यह एक अच्छी विधि है। प्रमुख रूप से इसमें ल्यूर को समय-समय पर बदलते रहना चाहिए उन्होंने बताया कि प्रमुख रूप से ट्रैप की देखभाल की भी आवश्यकता होती है और यह ट्रैप बच्चों और पालतू जानवरों से दूर रखे जाएं इसमें जो गंध आती है। उस गंध से कीट आकर्षित होते हैं गंध समाप्त होने पर नया ट्रैप लगा देना चाहिए। इसकी जानकारी छात्र -छात्राओं को दी गई। ट्रेनिंग प्रोग्राम में बीएससी (ऑनर्स) कृषि समेस्टर तृतीय के 60 छात्र-छात्राओं को प्रशिक्षित किया गया। महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो गजेंद्र सिंह एवं प्रशासनिक अधिकारी शिवमंगल चौरसिया ने बताया कि महाविद्यालय के प्रत्येक विभाग द्वारा इस प्रकार की वैल्यू ऐडेड ट्रेनिंग छात्र-छात्राओं को दी जाती हैं छात्र-छात्राएं महाविद्यालय से सीख कर किसानों के बीच में जब जाते हैं जिससे किसान लाभान्वित हो रहे हैं।

नवनीत कुमार की रिपोर्ट

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