Vishnugupta
आचार्य श्री विष्णुगुप्त

ब्रिटेन के लेस्टर में मुस्लिम दंगाइयों द्वारा हिन्दू मंदिरों और हिन्दू प्रतीकों के साथ हिन्दुओं पर हिंसा बरपाने और तालिबनी-जिहादी मानसिकता का प्रदर्शन करने की लोमहर्षक घटना से यूरोप के बहुलतावाद पर प्रश्न चिन्ह खड़े हुए हैं और यह बात प्रमाणित हो रही है कि इस्लाम की अवधारणा पर आधारित मुस्लिम हिंसा अब नियंत्रण से बाहर है। यूरोप व अमेरिका में भी मुस्लिम आबादी हिंसा, आतंकवाद, जिहाद की प्रतीक बन गयी है। अब मुस्लिम आबादी इस्लाम के आधार पर राष्ट्रवाद की अवधारणा को भी झूठा साबित कर रही है।

लेस्टर दंगे में भारतीय मुसलमान भी हिन्दुओं के खिलाफ दंगाई थे और पाकिस्तान के पक्ष में हिंसक थे। अब वैसे भारतीय मुसलमानों से भारतीय पासपोर्ट छिनने की मांग उठी है, जो अमेरिका, यूरोप और अरब में रहकर भारतीय हितों की कब्र खोदते हैं और भारत की छवि खराब करते हैं। लेस्टर मुस्लिम हिंसा की विस्तृत चर्चा से पूर्व कुछ ऐसी बातों का उल्लेख और चर्चा जरूरी है जो दुनिया को जिहादी-तालिबानी मानसिकता का शिकार बना रहा है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि मजहबी मानसिकता के नीचे और समर्थन में खड़ा रहों, अन्यथा तुम्हें मौत का घाट उतार दिया जायेगा, तुम्हारी प्रतीकों और तुम्हारे धर्म स्थलों का विध्वंस कर दिया जायेगा का संदेश रहा है।

एक बार कम्युनिस्टों और मुसलमानों का समूह ने मुझसे पूछ लिया बार-बार आप राष्ट्रवाद की बात क्यों करते हैं, क्या सिर्फ आप ही राष्टवादी हैं, क्या सिर्फ हिन्दू ही राष्टवादी हैं, क्या अन्य लोग राष्ट्रवादी नहीं हैं? अब मेरे उत्तर की बारी थी। मैंने कहा कि कम्युनिस्ट दुनिया में राष्ट्रवाद की कल्पना नहीं होती है। कम्युनिस्टों का मक्का-मदीना सोवियत संघ कोई राष्ट्र नहीं था, वह राष्ट्रों का समूह था, जो मिखाइल गोर्वाच्चोव की मेहरबानी से बिखर गया और कई राष्ट्रों में विभक्त हो गया।

अब बात मुसलमानों की, तो वह इस्लाम मानने वाले लोग राष्ट्र की परिधि और राष्ट्र की परिकल्पना को नहीं मानते। राष्ट्र की परिकल्पना को इस्लाम की तौहीन मानते हैं, पूरी दुनिया ही इस्लाम के लिए है, पूरी दुनिया को ही इस्लाम के लोग सिर्फ अपना मानते है, ये कहते हैं कि जो लोग इस्लाम को नहीं मानेंगे उन्हें हिंसा, तलवार और बम से उड़ा दिया जायेगा। मेरे उत्तर सुनकर कम्युनिस्टों और मुसलमानों का गिरोह खामोश हो गया था।

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मेरी उपर्युक्त अवधारणा को ब्रिटेन के लेस्टर दंगे में भी देखा गया। लेस्टर दंगे की घटना सिर्फ ब्रिटेन और यूरोप के हिन्दुओं के लिए ही खतरे की घंटी नहीं है बल्कि ईसाइयत के लिए खतरे की घंटी है, बिरटेन की स्थिति भी वैसे ही हो सकती है, जैसी स्थिति अफगानिस्तान, लेबनान और इस्लामिक वजूद वाले अफ्रीकी देशों की है। जानना यह भी जरूरी है कि ब्रिटेन में 20 प्रतिशत मुसलमानों की आबादी है जो सीधे तौर पर तालिबनी-जिहादी मानसिकता से ग्रसित है और ब्रिटेन की लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी प्रभावित कर रही है।

मेरी उपर्युक्त अवधारणा यही कहती है कि अगर इस्लाम और किसी भी धर्म के बीच टकराव होगा। तो फिर अलग-अलग प्रकार की अस्मिताएं रखने वाले इस्लामिक आबादी एक होकर हिंसा करेगी, युद्ध करेगी और प्रतिद्वदी विचारधारा के धार्मिक चिन्हों और मूल्यों को शिाकार बनायेगी, विध्वंस करेगी। लेस्टर में जो दंगा हुआ वह दंगे का आधार किसी भी तरह से न तो मजहबी था और न ही धार्मिक था। लेकिन तनाव का इस्लामिक करण किया गया। दंगे का आधार क्रिकेट था। भारत और पाकिस्तान के लोग अपने-अपने देश के समर्थन में अभियानी थे। यहां तक तो कोई भी मजहबी या फिर धार्मिक बात नहीं थी। पर पाकिस्तान क्रिकेट टीम का विरोध करना, पाकिस्तान क्रिकेट टीम का समर्थन न करना इस्लाम की तौहीन मान लिया गया।

आप यह जानते हैं कि जब इस्लाम की तौहीन का प्रसंग आता है तो किस प्रकार की हिंसा होती है, किस प्रकार का उफान पैदा किया जाता है, किस प्रकार की विखंडनकारी बाते होती हैं। सिर तन से जुदा की थ्योरी भी आप जानते हैं। इस्लाम की तौहीन के नाम पर मुसलमानों की गोलबंदी हुई और मुसलमानों की आक्रामक भीड़ ने ऐसी हिंसा की, ऐसी तालिबानी-जिहादी शक्ति का प्रदर्शन किया जिसको नियंत्रित करने के लिए ब्रिटेन की पुलिस भी असमर्थ थी, हिन्दू, जैन और सिखों के धर्म स्थलों को हिंसा का शिकार बनाया गया, तोड़फोड़ किया गया। हिन्दू आबादी के घरों को निशाना बनाया गया, हिंदुओं को घरों से खींच कर पीटा गया।

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लेस्टर के हिन्दुओं के लिए ऐसी हिंसा तो उम्मीद से परे थी। उन्हें यह विश्वास नहीं था कि जिनके साथ वह वर्षों से रहते रहे हैं और जिनके साथ नागरिक अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे हैं, वही लोग उनके लिए काल बन जायेंगे। ब्रिटेन का हिन्दू आबादी अन्य मुस्लिम आबादी के साथ मिल कर ऐशियाई मूल की पहचान को समृद्ध करती रही थी। मुस्लिम आबादी जहां मजदूर और अन्य छोटे-छोटे कार्यो में संलग्न रही है, वहीं हिन्दू आबादी ब्रिटेन की शिक्षा और व्यापर तथा राजनीति को नया आयाम देने का काम करती है। तरक्की के चक्कर में हिन्दू आबादी अपने दुश्मनों की पहचान तक नहीं कर पायी और न ही लेस्टर जैसी घटनाओं के लिए उनकी कोई तैयारी थी। यही कारण था कि लेस्टर की हिन्दू आबादी मुस्लिम जिहादियों के हमले का प्रतिकार तक नहीं कर सकी।

भारतीय मुसलमान भी पाकिस्तानी दंगाइयों के साथ खड़ा था। भारतीय मुसलमान भी हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा में पाकिस्तानियों का साथ दे रहे थे। जबकि हिन्दुओं ने भारतीय समुदाय के नाम पर भारत से ब्रिटेन जाने वाले मुसलमानों की समृद्धि के लिए हमेशा सक्रिय भूमिका निभायी थी। हिन्दुओं को यह उम्मीद तक नहीं थी कि भारतीय मुसलमान भी पाकिस्तानी दंगाइयों का साथ देंगे। लेकिन इस्लाम के आधार पर भारतीय मुसलमान पाकिस्तान के साथ खड़े रहते है।

ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया में यह देखा गया है कि जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होता है, तब भारतीय मुसलमान पाकिस्तानी टीम का समर्थन करते हैं। ऐसे उदाहरण भारत में भी बार-बार देखा गया है। कभी भारतीय टीम की हार और पाकिस्तानी टीम की जीत पर दिल्ली की जामा मस्जिद इलाके में सरेआम मिठाइयां बंटती थी। अभी हाल में दिल्ली के एक इलाके में मुसलमानों के गिरोह ने एक हिन्दू परिवार को बुरी तरह से इसलिए पीटा था कि उसने भारतीय टीम की जीत पर खुशियां मनायी थी।

भारत के कई इलाकों में मुसलमान पाकिस्तानी झंडा लगाते हुए पकड़े गये हैं, राजनीतिक धारणा-प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हुए बार-बार देखा गया है, कश्मीर के आतंकवादी संगठनों पाकिस्तान जिंदाबाद नारे लगाने की मानसिकता भी उल्लेखनीय है। अरविन्द केजरीवाल की पार्टी का एक नेता ने सरेआम कह दिया था कि भारत को अरब देश सबक सिखाये। इसके अलावा अरब में काम करने वाले भारतीय मुसलमान छोटे-छोटे मसलों पर अरब के मुसलमानों और अरब के सरकारों को उकसाने का कार्य करते रहे हैं। दिल्ली के एक बड़े संस्थान में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे थे जिसकी गूंज बहुत दूर हुई थी।

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ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग को मुसलमानों की इस करतूत पर प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य होना पड़ा है। भारतीय उच्चायोग ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि हिन्दुओं के मंदिरों, हिन्दुओं के प्रतीक चिन्हों और हिन्दू आबादी पर हुए कातिलाना हमले डरावने और घृणात्मक हैं, हिन्दू समुदाय पूरी तरह से भयभीत और आतंकित है। भारतीय उच्चायोग की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद भी ब्रिटेन की सरकार हिन्दुओं की सुरक्षा करने में कितना दक्ष होगी और हिन्दुओं के बीच में आतंक की परिस्थितियां जो उत्पन्न की गयी है उसे नियंत्रित करने के लिए ब्रिटेन किस प्रकार की भूमिका निभाती है, यह देखना शेष है। पर चिंताजनक बात यह है कि ब्रिटेन का मीडिया और सरकारी तंत्र लेस्टर के दगे को ढ़कने और पोतने का काम किया है, मुसलमानों की करतूत को छिपाने का काम किया है।

अब मुस्लिम लॉबी भी बचाव पर उतर आयी है। मुस्लिम लॉबी घटना के लिए आरएसएस और बीजेपी को घसीटना शुरू कर दिया है पर मुसलमानों की हिंसक भीड़ जो हिंसा फैलायी है, उस पर बात नहीं हो रही है। भारतीय मुसलमान भी पाकिस्तान के पक्ष में होकर हिन्दुओं पर कैसे और क्यों हिंसा बरपायी, इस पर बात क्यों नहीं हो रही है?

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लेस्टर ही नहीं बल्कि यूरोप-अमेरिका के हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए भारत सरकार को तत्पर और सचेत रहना चाहिए। खासकर लेस्टर में हिंसा के शिकार हिन्दुओं को न्याय मिले, इसके लिए भी भारतीय सरकार को सक्रिय होना चाहिए। भारतीय मुसलमान भी विदेशों में भारत की कब्र खोदते हैं इस पर भारत में गंभीर चर्चा होनी चाहिए। वैसे भारतीय मुसलमानों से भारतीय पासपोट छिना जाना चाहिए जो पाकिस्तानियों के साथ मिलकर हिन्दुओं पर हिंसा करते हैं और इस्लाम के आधार पर भारत की कब्र खोदने का काम करते हैं।

(लेखक के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार)

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