Vishnugupta
आचार्य श्री विष्णुगुप्त

(PM Modi birthday) मेरे हाथ में एक निमंत्रण कार्ड आया। निमंत्रण कार्ड देख कर मैं बहुत ही आश्चर्य में पड़ गया और सोचने के लिए बाध्य हुआ कि सत्ता सुख के लालच में लोग इतने विचारहीन और नैतिकहीन, पलटूराम, आयाराम-गयाराम और रंगबदलू, विचारबदलू कैसे हो जाते है? (PM Modi birthday) क्या सिर्फ लाभ उठाने के लिए ही ऐसा होता है या फिर हृदय परिवर्तन भी होता है? (Vindeshwari Pathak) कुछ सुविधा भोगी लोग यह कह सकते हैं कि अब उस व्यक्ति को सच्चाई का अहसास हो गया होगा, (PM Modi birthday) इसलिए उसने अपना हृदय परिवर्तन कर लिया और अपना विचार बदल लिया।

ऐसा राजनीति में तो बार-बार देखा जाता है कि सत्ता जिसके हाथ में होती है, उसकी चरणंवदना करने के लिए लोग अपनी पार्टी और अपनी विचारधारा को भी लात मार देते हैं। (PM Modi birthday) पर राजनीति की तरह समाजसेवा और तथाकथित युग परिवर्तन, क्रांति के क्षेत्र में काम करने वाले लोग भी सत्ता के अनुसार रंगबदलू, पलटूराम, आयाराम-गयाराम, गिरगिट बन जाते हैं। (Vindeshwari Pathak) तो फिर ज्यादा चिंता होती हैं, ज्यादा नुकसानकुन लगता है।

सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि जो लोग ऐसे लोगों के अनुयायी हैं या फिर ऐसे लोगों को अपना आईकॉन मानते हैं उनका विश्वास टूटता है। आशाएं नाउम्मीदी में तब्दील हो जाती हैं। (Vindeshwari Pathak) परिवर्तन और क्रांति के लिए सहयोगी की उनकी भूमिकाएं बेअर्थ हो जाती हैं। हाल के वर्षों में इस तरह के उदाहरण कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहे हैं।

ऐसा क्या था उस निमंत्रण कार्ड में जिसने मुझे इस पर लिखने और जनगारूकता के लिए प्रेरित किया। निमंत्रण कार्ड भव्य और आकर्षक तथा खर्चीला जरूर था। पर मुझे इस पर चिंता नहीं हुई और न मुझे इस पर कोई ध्यान जाना था। (Vindeshwari Pathak) आजकल आकर्षक, भव्य और खर्चीला निमंत्रणकार्ड छपवाना एक शौक बन गया है, स्टेटस सिंबल बन गया है। निमंत्रण कार्ड पर अंकित शब्दों पर मुझे ध्यान गया। निमंत्रण कार्ड का विषय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जुड़ा हुआ था। नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन से जुड़ा हुआ था।

पीएम मोदी के जन्मदिन को जल, शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा दिवस के रूप में मनाने की बात थी। पीएम मोदी का जन्मदिवस 17 सितम्बर को होता है। मोदी ही क्यों बल्कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति का जन्मदिन उनके चमचे-बेलचे, समर्थक आदि मनाते ही हैं। इसके अलावा सरकार के अंग या फिर सरकार के नजदीकी लोग भी प्रधानमंत्री के जन्मदिन को किसी न किसी याद के रूप में मनाते हैं। सिर्फ प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति की ही नहीं, बल्कि जो प्रमुख हस्तियां होती हैं, जिनके पास अधिकार होता है, शक्ति होती है, पैसे होते हैं, कुछ बनाने और कुछ बिगाड़ने की उनके पास कला होती है। उनका जन्मदिन भी लोग बड़े खेल व पैंतरेबाजी से मनाते हैं।

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पीएम मोदी का जन्मदिन मनाने वाला कौन है, उसकी हैसियत और खासियत क्या है? उसकी नैतिकता और अनैतिकता क्या है? वह कितना पलटूराम है, कितना रंगबदलू है, कितना आयाराम-गयाराम है, कितना विचारवान है, कितना विचारहीन है, यह भी जान लीजिये। मोदी का जन्मदिन मनाने वाला विन्देश्वरी पाठक (Vindeshwari Pathak) है। विन्देश्वरी पाठक (Vindeshwari Pathak) सुलभ शौचालय का मालिक है।

विन्देश्वरी पाठक (Vindeshwari Pathak) को सुलभ शौचालय के विस्तार और सफाई अभियान के नाम पर कई पुरस्कार मिल चुके हैं। इनकी एनजीओ में कई रिटायर्ड आईएएस अफसर भी इनके नौकर रहे हैं। बिहार के पूर्व मुख्य सचिव अरुण पाठक कभी इनके नौकर रह चुके है। उनकी एनजीओ दुनिया के कई देशों में फैली हुई है। संयुक्त राष्ट्रसंघ से भी ये प्रशंसा पा चुके हैं। विख्यात होने के साथ ही साथ कुख्यात भी रहे हैं। कई विवादों से भी ये लदे हुए हैं।

दिल्ली नगर निगम और इनकी एनजीओे के बीच में विवाद हुआ था। इस विवाद को लेकर इन्हें दिल्ली के प्रेस क्लब में प्रेस कान्फेंस तक करनी पड़ी थी। ये अपने खिलाफ लिखने वाले पत्रकारों को अपनी पैंतरेबाजी और शक्ति से प्रताड़ित भी करते रहे हैं। कभी इनका शिकार बेहद ईमानदार और विख्यात पत्रकार सुरेन्द्र किशोर भी हुए थे। सुरेन्द्र किशोर ने इनके खिलाफ खबर लिखी थी। सुरेन्द्र किशोर पर इन्होंने कोर्ट में मुकदमा ठोक दिया। मुकदमा लड़ते-लड़ते बेचारे सुरेन्द्र किशोर थक गये, उनकी खबर सही थी।

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कभी-कभी न्यायालयों में अपराधी का अपराध साबित नहीं होता, पुलिस अपराध साबित नहीं कर पाती है। इसी तरह अपराधी बरी हो जाते हैं। बाद में समाजवादी नेता और कर्पूरी ठाकुर के प्रिय पात्र लक्ष्मी साहू के हस्तक्षेप से सुरेन्द्र किशोर की परेशानी दूर हुई और विन्देश्वरी पाठक ने मुकदमा वापस लिया था। इसके अलावा वृन्दावन, मथुरा और काशी तथा बद्रीनाथ के विधवाश्रमों में रहने वाली महिलाओं के लिए इन्होंने पेंशन और सहायता की घोषणा की थी, जो अब पर्व-त्योहारों पर सिर्फ आयोजनों तक सीमित हो गया।

विन्देश्वरी पाठक ने कलावती की मदद कर वाहवाही खूब लूटी थी। कलावती कौन थीं? कलावती राहुल गांधी को राखी भेजने वाली बहन थीं। कलावती की कहानी कांग्रेस के राज में खूब उठी थी। राहुल गांधी उनके घर पहुंचे थे और रातोंरात कलावती पोस्ट वुमेन बन गयी थीं। विन्देश्वरी पाठक ने राहुल गांधी की जमकर प्रशंसा की थी और कहा था कि राहुल गांधी के सपनों को पूरा करने के लिए वे कुछ भी करने के लिए तैयार हैं।

कलावती जैसी विधवाओं को गोद लेने और खासकर कलावती को 30 लाख रुपये देने की घोषणा की थी। कलावती को इतनी बड़ी राशि देने के पीछे मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नजदीक आना और उनके गुणगान की कसौटी पर अपनी एनजीओ की योजनाओं में सरकारी सहयोग के रास्ते को आसान करना ही होगा। उस काल में विन्देश्वरी पाठक राहुल गांधी का गुणगान करते थे और इनके आदर्श सोनिया गांधी व मनमोहन सिंह थे।

सत्ता बदलने के साथ ही साथ राहुल गांधी अब इनके प्रेरणास्रोत नहीं रहे, क्रांतिकारी युवक नहीं रहे, मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी अब इनके लिए कुशल प्रशासक नहीं रहे। अब इनके लिए कुशल प्रशासक और प्रेरणास्रोत नरेन्द्र मोदी हो गये हैं। नरेन्द्र मोदी का जन्मदिन 17 सितम्बर को हर वर्ष ये जल शिक्षा, स्वच्छता सेवा दिवस के रूप में मनाते हैं। नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा में बड़े-बड़े और आकर्षक बुकलेट छापते है,सेमिनार करते हैं, गोष्ठियां आयोजन करते हैं। इनके आयोजनों में नरेन्द्र मोदी सरकार के मंत्री, राज्यपाल और वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहते हैं। इस बार राज्यपाल गंगा प्रसाद इनके आयोजन के मुख्य अतिथि थे।

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विन्देश्वरी पाठक जैसी मानसिकता को एक बार महान समाजवादी नेता जार्ज फर्नाडीस ने आइना दिखाया था। जनता पार्टी के शासन के दौरान औद्योगिक संगठन फिकी ने एक बार अपने अधिवेशन में जार्ज फर्नाडीस को आमंत्रित किया था। फिकी के उद्योगपितयों ने जार्ज की प्रशंसा की थी और आपातकाल को काला अध्याय बताया था। जार्ज फर्नाडीस अपनी कमीज से एक कागज का टूकड़ा निकाल कर पढ़ना शुरू किया था, जिसमें लिखा था कि आपने पिछले अधिवेशन में इन्दिरा गांधी की आपातकाल के लिए बधाई दी थी, आपातकाल को अनुशासन का प्रतीक बताया था। जार्ज की बात सुनते ही फिकी के उद्योगपतियों का सिर शर्म से झुक गया था।

विन्देश्वरी पाठक जैसी मानसिकता का दुष्परिणाम क्या होता है? दुष्परिणाम भयंकर होता है, भ्रष्टचार के खिलाफ लड़ाई कमजोर होती है, नैतिक बल वाले हतोत्साहित होते हैं। इसके अलावा ऐसे लोग सरकार से नजदीक होने का दावा कर अपना वैध और अवैध कार्य आसानी से करा लेते हैं। विन्देश्वरी पाठक ही क्यों बल्कि आज हजारों लोग, जिसमें पत्रकार, लेखक, समाजसेवी, एनजीओ टाइप के लोग रातोंरात अपनी विचारधारा को लात मार कर नरेन्द्र मोदी के प्रशंसक बन गये।

सबसे बड़ी बात यह है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार में ऐसे सैकड़ों लोग लाभ के पद पर जा बैठे जो कभी नरेन्द्र मोदी को दंगाई कहते थे, भाजपा को भारत जलाओ पार्टी कहते थे, हिन्दुत्व को हिंसक कहते थे। कभी घोर वामपंथी सुधीन्द्र कुलकर्नी लालकृष्ण आडवाणी के सलाहकार बन गये थे जिसने जिन्ना प्रकरण में आडवाणी के राजनीतिक मौत का कारण बना था।

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बड़ा प्रश्न तो नरेन्द्र मोदी जैसे ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ प्रधानमंत्री पर खड़ा होता है। आखिर अनैतिक और विचारहीन तथा पलटूराम जैसे लोग उनकी सत्ता के नजदीक कैसे पहुंच जाते हैं, ऐसी संस्कृति के लोगों के कार्यक्रमों में नरेन्द्र मोदी सरकार के मंत्री कैसे पहुंच जाते हैं? क्या ऐसे लोगों के कार्यक्रमों में जाने के पहले नरेन्द्र मोदी सरकार के मंत्री और अधिकारी संबंधित लोगों का इतिहास, भूगोल और पलटू विचार धारा की पड़ताड़ नहीं करते हैं। राज्यपाल एक संवैधानिक पद होता है। गंगा प्रसाद जैसा व्यक्ति जो राज्यपाल के संवैधानिक पद पर बैठा हुआ है फिर भी विचारबदलू और सत्ता के रंग में रंगने वाले विन्देश्वरी पाठक के कार्यक्रम में कैसे पहुंच जाते हैं? नरेन्द्र मोदी से यह उम्मीद होनी चाहिए कि वे अपने मंत्रियों और अधिकारियों को ऐसे कार्यक्रमों में जाने से प्रतिबंधित करे, रोके। राज्यपालों को भी विन्देश्वरी पाठक की संस्कृति के कार्यक्रमों में जाने पर लक्ष्मण रेखा खीची जानी चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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