अरबिन्द शर्मा (अजनवी)
अरबिन्द शर्मा (अजनवी)

देख तुम्हारी अदा प्रिये,
बिन पिये नशा छा जाता है।
आने की तेरी आहट सुन,
दिल झूम-झूम कर गाता है।।

नभ से वसुधा पर आई हो,
तुम परी हो कोई मतवाली।
काली ज़ुल्फ़ें कोमल काया,
तेरी आँखें मद्य की है प्याली!!

प्रिये! तेज़ तीर मुस्कान तेरी,
जिसे देख मेरा मन बहक गया।
तुम फ़ूल खिली फूलवारी हो!
दिल मधुकर बनकर मचल गया।।

मधु गान अधर पर गुंज रहा,
तुम महक रही मेरे सासों में।
तुम्हें देख चांद शरमा जाता,
आती हो जब तुम रातों में।।

मदहोश मुझे कर जाती है,
ख़्वाबों में रोज तेरा आना।
क्या चीज जुदाई होती है,
जब निंद खुली तो मैं जाना।।

कुछ पल का मिलना और बिछड़ना,
हमें नहीं मंज़ूर प्रिये।
तुम रहो हमेशा पास मेरे,
मैं रहूं न तुमसे दूर प्रिये।।

कोई और नहीं है सासों में,
न और है कोई यादों में।
बस तुम्हीं मेरी वो मूरत हो,
प्रिय जिसे तराशा ख़्वाबों में।।

शब्द नहीं कि लिखू मैं ”दीपा”
कैसे तुम्हें बताऊं।
देखे जब जब स्वप्न ये आंखें,
बस! तुम्हें साथ मैं पाऊं।।

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