
Kahani: एक बार एक व्यापारी को व्यापार के सिलसिले में परदेस जाना था और उसके लिए पैसों की जरूरत थी। वह एक साहूकार के पास गया और उससे पैसे उधार लिए। व्यापारी ने अपनी लोहे की तराजू साहूकार के पास गिरवी रखवा दी। अपनी यात्रा से वापस आने के बाद, व्यापारी साहूकार के घर गया। उसने उसके पैसे वापस किए और उससे अपनी तराजू मांगा।
लालची साहूकार बोला, मेरी दुकान में बहुत सारे चूहे हैं। चूहों ने तुम्हारी तराजू कुतर दिया। व्यापारी को पता था कि साहूकार झूठ बोल रहा है पर उसने साहूकार से कोई बहस नहीं किया। उसने कहा, कोई बात नहीं। मैं तुम्हारे लिए रेशम के कुछ कपड़े की थान लाया हूं। क्या तुम अपने बेटे को मेरे साथ भेज दोगे? वह कपड़ों के थान को लेकर वापस आ जाएगा। सौदागर की आंखें चमक उठी और उसने अपने बेटे को व्यापारी के साथ भेज दिया।
व्यापारी साहूकार के बेटे को एक गुफा में ले गया और बोला, मैंने अपना सामान इस गुफा में रखा हुआ है। अंदर जाकर दो थान निकाल लो। जैसे ही लड़का अंदर गया, व्यापारी ने गुफा का दरवाजा बंद कर दिया। व्यापारी अकेला साहूकार के पास गया। परेशान साहूकार ने पूछा, मेरा बेटा कहां है? व्यापारी ने कहा, मुझे माफ करना। एक चील तुम्हारे बेटे को अपने पंजे में दबाकर उड़ गया।
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साहूकार गुस्से में बोला, ऐसा कैसे हो सकता है? मैं तुम्हारी शिकायत गांव के बड़े बुजुर्ग से करूंगा। जब बुजुर्गों ने व्यापारी से लड़के को वापस करने को कहा, तो व्यापारी बोला, जब लोहे के तराजू को चूहा खा सकता है, तो लड़के को चील कैसे नहीं उठा सकता? उन लोगों ने व्यापारी से पूरा मामला बताने को कहा। व्यापारी की बात सुनकर बुजुर्गों ने साहूकार को तराजू वापस देने को कहा।
शिक्षा: मित्रों, जैसा बीज बोओगे, वैसी फसल काटोगे।
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