Kahani: ठाकुर जी का एक बहुत प्यारा भक्त था, जिसका नाम अवतार था। वह छोले बेचने का काम करता था, उसकी पत्नी रोज सुबह-सवेरे उठ छोले बनाने में उसकी सहायता करती थी। एक बार की बात है एक भिखारी जिसके पास खोटे सिक्के थे, उसको सारे बाजार में कोई वस्तु नहीं देता था, तो वह अवतार के पास छोले लेने आता हैं। अवतार ने खोटा सिक्का देखकर भी उस भिखारी को छोले दे दिए। ऐसे ही चार-पांच दिन उस भिकारी ने अवतार को खोटे सिक्के देकर छोले ले लिए और उसके खोटे सिक्के चल गए।

धीरे-धीरे सारे बाजार में यह बात फैल गयी की अवतार तो खोटे सिक्के भी चला लेता है। लोग उसे मूर्ख कहने लगे और कुछ उसे समझाने लगे पर अवतार लोगों की बात सुनकर कभी जवाब नहीं देते थे। अपने ठाकुर की मौज में खुश रहते थे। एक बार जब अवतार पाठ पढ़ कर उठे तो अपनी पत्नी से बोले- क्या छोले तैयार हो गए? पत्नी बोली, आज तो घर में हल्दी-मिर्च नहीं थी और मैं बाजार से लेने गयी तो सब दुकानदारों ने कहा कि यह तो खोटे सिक्के हैं और उन्होंने सामान नहीं दिया। पत्नी के शब्द सुनकर अवतार ठाकुर की याद में बैठ गए और बोले, जैसी तेरी इच्छा मेरे स्वामी। तुम्हारी लीला कौन जान सका हैं।

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तभी आकाशवाणी हुई, क्यों अवतार तू जानता नहीं था कि यह खोटे सिक्के हैं। अवतार बोला, “ठाकुर जी मैं जानता था।” ठाकुर जी ने कहा, फिर भी तूने खोटे सिक्के ले लिए ऐसा क्यों किया, भले मानुष। अवतार बोला, हे दीनानाथ! मैं भी तो खोटा सिक्का हूँ, इसलिए मैंने खोटा सिक्का ले लिया कि जब मैं आपकी शरण में आऊँ, तो आप मुझे अपनी शरण से नकार न दें। क्योंकि आप तो खरे सिक्के ही लेते हो आप स्वयं सब जानते हो। खोटे सिक्कों को भी आपकी शरण में जगह मिल सकें।

थोड़ी देर में दूसरी आकाशवाणी हुई, हे भले मानुष! तेरा भोला पन तेरा प्यार स्वीकार है मुझे। तू ठाकुर का खोटा सिक्का नहीं खरा सिक्का हैं। और तभी उसके घर एक धनी व्यक्ति का उसके मित्र के रूप में आना हुआ उसने अवतार की जीवन भर की सारी व्यवस्था कर दी। वह धनी व्यक्ति मित्र बनकर कोन आया था, ये आपके विवेक पर निर्भर है।

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