चित्रकूट: मरीज की चिकित्सीय सेवा उनकी प्राथमिकता है। पारिवारिक जिम्मेदारियों को कभी स्वास्थ्य सेवा में हावी नहीं होने देते। अटेंडर की मनमानियों को हँसते हुए नजर अंदाज करते हैं, ताकि किसी भी हालत में जच्चा-बच्चा का हित प्रभावित न हों। यह कहना है सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की नर्सेज का। इनकी कर्तव्य निष्ठा और विनम्र स्वभाव के चिकित्सक व विभागीय अधिकारी भी कायल हैं। ऐसी ही मानवता की मूर्ति फ्लोरेंस नाटेंगिल की याद में उनके जन्म दिवस 12 मई को हर साल अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. भूपेश द्विवेदी ने बताया कि जिले में तैनात सभी स्टाफ नर्स पूरी जिम्मेदारी से कार्य कर रही हैं। नर्स डे सभी नर्सेज को बधाई देते हुए यहीं कहूंगा कि वह चिकिसीय सेवाएं दिल से दें। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मऊ के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ. धर्मराज सरोज और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शिवरामपुर के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ. लखन स्वरूप गर्ग का कहना है कि उनके सीएचसी पर तैनात सभी स्टाफ नर्स पूरे मनोयोग से कार्य करती हैं।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मऊ में बतौर स्टाफ नर्स दीप्ति वर्मा जून, 2016 से सेवाएं दे रही हैं। उनका कहना है कि ड्यूटी के दौरान मरीज की हर संभव चिकित्सीय सेवा करना उनकी प्राथमिकता है। परिवार के लोगों से न मिल पाने का दर्द रहता है लेकिन मरीज के सामने यह जाहिर नहीं होने देते। प्रयास रहता है की अस्पताल आई हर प्रसूता को इलाज के साथ साथ अपने व्यवहार से भी संतुष्ट किया जाए। बताया की चार से छः माह के अंतराल में ही परिवार के सदस्यों से मिल पाते है। दो स्टाफ के परिवार में एक साथ एक ही दिन कार्यक्रम हुए तो दोनों का पहुंचना मुमकिन नहीं होता है। उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि नवम्बर, 2021 में भोपाल में उनके मामा की लड़की की शादी थी, लेकिन लाख कोशिश के बाद भी कार्य की व्यस्तता के कारण शामिल नहीं हो पाए।

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सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शिवरामपुर में छह साल से स्टाफ नर्स के रूप में सेवाएं दे रहीं प्रवीणा का कहना है कि अस्पताल आई प्रसूता को इलाज में किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो इसका पूरा ध्यान रखते हैं। लेबर पेन होने पर गर्भवती जब अस्पताल आती है तो उनके अटेंडर जिद करते हैं तुरंत डिलेवरी कराइए भले ही उसके प्रसव में देर हो। समझाने के बाद भी बात नहीं मानते। अभद्रता करते हुए लड़ने लगते हैं। इसके बावजूद भी हम प्रसूता के हित को देखते हुए उनकी बातों को अनसुना करते हैं। रात में अक्सर दिक्कत होती है। रात में आने वाली पांच प्रसूताओं में से किसी न किसी के अटेंडर जरूर नसे में होते हैं और अभद्रता करते हैं। अनुभव साझा करते हुए बताया कि एक बार डिलेवरी के बाद बच्चे की तबीयत गंभीर हो रही थी। उसे जिला अस्पताल के लिए रेफर का लेटर बन गया, लेकिन दूसरे प्रसूता का अटेंडर उसे भेजने में अडंगा लगा रहा था। बच्चे की जान पर ख़तरा बढ़ रहा था, लेकिन वह नहीं मान रहा था। ऐसे में शिवरामपुर पुलिस को फोन लगाया पुलिस के आने पर उन्हें जिला अस्पताल भेजा गया और बच्चे की जान बची।

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