नई दिल्ली: सच ही कहा गया है, ‘ठान लो तो जीत और मान लो तो हार।’ हमारे बीच कई ऐसा चीजें हैं, जिसपर हम गौर करें तो वह हमारे हौसले को बढ़ाती हैं। जो यह संदेश देती हैं कि जिंदगी में नामुमकिन जैसी कोई चीज नहीं है। इस बात को हैदराबाद के रहने वाले 42 वर्षीय गतिपल्लि शिवपाल ने सच साबित कर दिखाया है। इसी के साथ वह भारत के पहले बौने हैं, जिन्होंने ड्राइविंग लाइसेंस हासिल किया है। गतिपल्लि शिवपाल कार चलाने में ही नहीं बल्कि पढ़ाई के मामले में भी काफी आगे हैं। वे अपने जनपद के पहले दिव्यांग हैं, जिन्होंने डिग्री हासिल की है।

गतिपल्लि शिवपाल का कहना है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल कर पाना उनके लिए मुश्किल था, इससे निजात पाने के लिए उन्होंने उ्राइविंग सीखने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि अक्सर लोग उनके कद को लेकर मजाक उड़ाते रहते हैं, लेकिन आज मेरा नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के साथ कई जगहों पर दर्ज हो चुका है। कई बौने अब मुझ से कार चलाने की ट्रेनिंग लेना चाह रहे हैं। इसके लिए उन्होंने ड्राइविंग स्कूल खोलने का फैसला किया है। बता दें कि लिम्का बुक के अलावा तेलगु बुक ऑफ रिकार्ड में भी शिवपाल का नाम दर्ज है। उन्होंने बताया कि ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करने के लिए उन्हें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

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उन्होंने बताया कि अमेरिका के एक बौने का कार चलाते हुए वीडियो देखने के बाद उनके ड्राइविंग करने के सपने को पंख लग गए। इसके लिए उन्होंने यूएस जाकर इस तकनीक की जानकारी हासिल की। इसके बाद वह भारत वापस आए और मैकेनिक की मदद से हैदराबाद में उन्होंने अपने लिए कार को कस्टमाइज करवाया। कार चलाने के लिए शिवपाल करीब 120 बार ड्राविंग स्कूल गए, लेकिन सभी ने उन्हें ड्राइविंग सिखाने से इनकार कर दिया। बाद में उनके एक दोस्त ने मदद करते हुए उन्हें कार चलाने लायक बना दिया और उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस भी मिल गया। इसी के साथ वह भारत के पहले बौने बन गए हैं, जिन्हें ड्राइविंग लाइसेंस हासिल हुआ है।

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