संजय तिवारी

लखनऊ: नंदी की प्रतीक्षा पूरी हो गयी। बाबा मिल गए। श्रीकाशी विश्वनाथ (Kashi Vishwanath) के पवित्र शिवलिंग के जलाभिषेक के जल से अभी तक वहां जाने वाले मुसलमान लोग वजू कर रहे थे। आज उन्हें यह प्रमाण स्वयं मिल गया होगा कि ज्ञानवापी (Gyanvapi Mosque) और वहां उनके द्वारा अदा की जाने वाली नमाज इस्लाम के नियमों के पूर्णतया विरुद्ध है। उस मस्जिद (Gyanvapi Mosque) परिसर के भीतर से तीन दिनों के सर्वे में मिली मूर्तियां, प्रतीक, सर्प, घंटी, स्वस्तिक, त्रिशूल आदि अनेक प्रमाणों के आ जाने के बाद अब देश में गंगा जमुनी बयार तेजी से बहाई जाए, तो सबका भला हो जाएगा।

एक अतिआस्था के केंद्र को झूठी मस्जिद तो हमारे देश में अमन की वकालत करने वाले उलेमाओं को भी स्वीकार नहीं होनी चाहिए। ठीक है लमहों ने खता की थी, लेकिन अब तो उन लमहों जैसा परिवेश नहीं है न। अब भारत के शिक्षित शांतिप्रिय तर्कशील इस्लामिक स्कॉलर्स और भाईचारा बनाने की मुहिम चलाने वालों को देश और समाज के हित में आगे आकर इसी देश में रहने वाले हिंदुओं की भावनाओं और आस्था का भी सम्मान अवश्य करना चाहिए। यह अलग बात है कि अभी तक कोई भी ऐसा स्वर सामने आया नहीं है। उल्टे, यह जरूर हुआ है कि वे तत्काल सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।

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एक प्रश्न जरूर खड़ा हो रहा है कि स्वाधीनता के 75 वर्षों में क्या भारत में कोई एक ऐसा पढ़ा लिखा मुसलमान नहीं पैदा हुआ जो इस्लाम और मस्जिद की मजहबी जबान के अलावा कभी कभी सच्चाई पर भी बात कर सके? केरल के राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान एक अकेले दिखते हैं, जिनको सच्चाई स्वीकारने में कभी संकोच नहीं रहा। खैर, आज बात हो रही है ज्ञानवापी मस्जिद के तीन दिनों तक सर्वे के बाद मिलने वाले साक्ष्यों और हिन्दू पक्ष की याचिका को स्वीकार करने पर। सैकड़ों वर्षों से काशी विश्वनाथ मंदिर टूटने के बाद से ही भगवान शिव के वाहन नंदी की नजरों की दिशा में ही आज नंदी के अधीश्वर मिल गए हैं।

Gyanvapi Mosque

खास बात यह कि जिस जलकुंड में बाबा मिले हैं उसी के जल से वजू कर के यहां लोग नमाज पढ़ा करते थे। इस्लामिक दृष्टि से यह इस्लाम के ही खिलाफ है कि किसी अन्य देवी देवता के ऊपर चढ़े जल से वजू किया जाय। किसी अन्य पूजास्थल के ऊपर मस्जिद बना दी जाय। यह बात तो इस्लामिक स्कॉलरों को बोलनी चाहिए। आज अभी तक कोई इस्लामिक स्कॉलर यह क्यों नहीं बोल रहा कि ज्ञानवापी की मस्जिद इस्लामिक आस्था के खिलाफ है। देश में गंगाजमुनी तहजीब के नुमाइंदों को आगे आकर प्रेम से इस जगह को बाबा और उनके अनुयायियों को स्वतः सौंप देनी चाहिए।

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ऐसा बिल्कुल नहीं होगा। इसी लिए अखिल भारतीय संत समिति ने अपना निर्णय सुना दिया है। समिति के अखिल भारतीय महामंत्री स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा है कि इतने प्रमाण और श्रीकाशी विश्वनाथ का मूल विग्रह सामने आने के बाद अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह हमें पूजा और अभषेक करने की छूट दे। यदि ऐसा नहीं होता है तो यह विश्व के इतिहास में हिंदुओं पर किया जाने वाला सबसे बड़ा अत्याचार होगा।

बहरहाल, काशी को उसके आराध्य, स्वामी मिल चुके हैं। आज न्यायालय ने भी उनकी उपस्थिति स्वीकार कर उस स्थान को तत्काल प्रभाव से सील कर दिया है। अब सबसे बड़ी भूमिका भारत के शिक्षित और स्वयं को शांतिप्रिय बताने वाले मुस्लिम समुदाय और उनके धर्मगुरुओं की बनती है। वे सत्य को स्वीकार कर पाते हैं या फिर रजानीतिक इस्तेमाल के लिए खुद को छोड़ देंगे। क्योंकि बाबा जब मिल गए हैं तो बाबा के लोग अभिषेक तो करेंगे ही। यह उनका अधिकार भी है।

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