प्रकाश सिंह

गोंडा: चुनावी मौसम में सरकार के साथ-साथ पूरा विपक्ष किसान हितैषी बना हुआ है, बावजूद इसके किसान खाद की किल्लत से जूझ रहा है। बुवाई के सीजन में किसान खाद के लिए इधर-उधर भटक रहा है। सरकार की तरफ से पर्याप्त मात्रा में खाद होने की बात कही जा रही है, तो वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए चुनावी समीकरण साधने जनता के बीच पहुंचे नेता खुद को सच्चा किसान हितैषी बताने में लगे हुए हैं। परसपुर विकास खंड के इफ्को केंद्र में खाद की कालाबाजारी जारी है, जिसके चलते किसानों को बिना खाद लिए वापस लौटना पड़ रहा है।

मजे की बात यह है कि परसपुर विकास खंड के ब्लॉक प्रमुख के पति अजय सिंह जो विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं, उनके क्षेत्र का यह हाल है। अजय सिंह अपने जानने वालों के बीच पहुंचकर खुद को गरीबों और किसानों का मसीहा साबित करने का पूरा प्रयास करते रहते हैं, लेकिन हकीकत क्या है, यह स्थानीय लोग बाखूबी समझ रहे हैं। बिना खाद पाए वापस लौट रहे किसानों में सरकार और चुनावी चेहरों को लेकर काफी नाराजगी देखी जा रही है। किसान राजेश वर्मा, प्रीतम यादव, कन्हैया कुमार आदि ने कहा कि जनता का हितैषी बनने का दिखावा करने वाले अजय सिंह जनता के दर्द को कितना समझते हैं, यह हम लोग जानते हैं।

Fertilizer shortage

बुवाई के सीजन में हम लोगों को खाद-बीज नहीं मिल पा रही है, लेकिन न ब्लाक प्रमुख का कहीं अता-पता है और न ही उनके पति अजय सिंह का। किसानों ने कहा कि अजय सिंह रहते लखनऊ में हैं एक दिन आकर अपनों की बीच फोटो खिंचवाकर वह चुनाव लड़ने का सपना देख रहे हैं। किसानों ने गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि ब्लॉक प्रमुख के पति को फोटो खिंचवाने वाले वोट भी दे देंगे। किसानों ने कहा कि नेता बुवाई के सीजन से लेकर चुनाव के समय तक किसान व गरीबों को छलने का काम करते हैं। किसानों की समस्या को लेकर वह मंच पर चिंतित दिखते हैं, मगर मंच के बाद उन्हें किसान-गरीब नजर ही नहीं आते। खाद के लिए हम लोगों को इधर-उधर भटकना पड़ रहा है, लेकिन हमारे सांसद व विधायक को यह समस्या नजर ही नहीं आ रही है।

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इस संदर्भ में जिले के अधिकारियों से बात करने पर पता चला कि खाद पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। सरकार के तमाम आदेश के बावजूद भी जिम्मेदार अधिकारियों की खामोशी कहीं ना कहीं सरकार की छवि धूमिल करने का काम रही है। तमाम जनप्रतिनिधि के होने के बावजूद भी किसान खाद के लिए दरबदर भटकने को मजबूर हैं।

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