वाराणसी: समाज में बेटियों को आज भी कुछ लोग बोझ समझते हैं। ऐसी विकृत मानसिकता के लोग बेटियों के जन्म लेने पर उतनी खुशी जाहिर नहीं करते, जितनी वह बेटा होने पर खिलखिलाते हैं। ऐसी ही मानसिकता के लोग ‘कन्या भ्रूण हत्या’ जैसी घटनाओं को भी अंजाम देते हैं। बेटियों को भ्रूण हत्या से बचाने और उनके प्रति समाज की घृणित सोच को बदलने का डा. शिप्रा धर ने वीणा उठाया है। अपने नर्सिंग होम में बेटियों के जन्म लेने पर वह उत्सव मनाती हैं। प्रसूता का सम्मान करने के साथ ही मिठाईयां बटवाती है। इतना ही नहीं बेटी चाहे नार्मल हुई हो या सिजेरियन वह फीस भी नहीं लेती।

डा. शिप्रा का बचपन बड़े ही संघर्षों से गुजरा। जब वह छोटी थी तभी उनकी मां इस दुनियां को छोड़ कर चली गयी। बेटियों के प्रति समाज में भेदभाव को देख उनके मन में शुरू से इच्छा थी कि वह बड़ी होकर इस दिशा में कुछ जरूर करेंगी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से वर्ष 2001 में एमडी की पढ़ाई पूरी करने के बाद डा. शिप्रा ने अशोक बिहार कालोनी में नर्सिंग होम खोला। डा. शिप्रा बताती हैं ‘इस बात को वह काफी दिनों से महसूस कर रही थीं कि डिलेवरी रूम बाहर खड़े परिजनों को जब यह पता चलता था कि बेटी ने जन्म लिया है तो वह मायूस हो जाते थे। उनकी बातचीत से यह पता चल जाता था कि उन्हें तो बेटा होने का इंतजार था और अब बेटी ने एक बोझ के रूप में जन्म ले लिया है।

Dr. Shipra Dhar

बच्ची के जन्म पर उसके परिवार में फैली मायूसी को दूर करने और लोगों की इस सोच को बदलने का उन्होंने संकल्प लिया और तय किया कि अपने नर्सिंग होम में बेटियों के जन्म को एक उत्सव के रूप में मनायेंगी। मिठाइयां बटवायेंगी, प्रसूता को सम्मानित करेंगी और जच्चा-बच्चा के उपचार का कोई फीस नहीं लेंगी। इस संकल्प को पूरा करने में उनके पति डा. मनोज श्रीवास्तव ने भी काफी सहयोग किया। नतीजा है कि वर्ष 2014 से शुरू हुए इस अभियान में उनके नर्सिंग होम में पांच सौ से अधिक बेटियों ने जन्म लिया और इनमें से किसी भी अभिवावक से उन्होनें फीस नहीं ली।

Dr. Shipra Dhar

नर्सिंग होम में बेटियों को निःशुल्क कोचिंग

गरीब बच्चियों को पढ़ाने के लिए डा. शिप्रा अपने नर्सिंगहोम के एक हिस्से में कोचिंग भी चलाती हैं जहां 50 से अधिक बेटियां निःशुल्क प्रथमिक शिक्षा ग्रहण करती हैं। इसके लिए उन्होंने अध्यापकों को रखा है और समय-समय पर वह खुद भी बच्चियों को पढ़ाती हैं। इस कोचिंग का नाम उन्होंने ‘कोशिका’ रखा है। उनका कहना है कि जिस तरह किसी जीव की सबसे छोटी उसकी कोशिका होती है उसी तरह बेटियां भी समाज की एक ‘कोशिका’ है। इनके बिना समाज की कल्पना व्यर्थ है। इसलिये उन्हें मजबूत बनाना है। इसी सोच के तहत वह 25 बेटियों के लिए सुकन्या समृद्धि योजना का पैसा भी जमा करती है ताकि बड़ी होने पर वह उनके काम आ सके।

इसे भी पढ़े: डॉक्टर से मारपीट मामले में ब्लॉक प्रमुख पर एफआईआर 

Dr. Shipra Dhar

निर्धन महिलाओं के लिए अनाज बैंक

निर्धन महिलाओं के लिए डा. शिप्रा अनाज बैंक का भी संचालन करती है। इसके तहत हर माह की पहली तारीख को वह 40 निर्धन विधवा व असहाय महिलाओं को अनाज उपलब्धत कराती हैं। इसमें प्रत्येक को 10 किग्रा गेहूं व 5 किग्रा चावल शामिल रहता है। इसके अतिरिक्त इन सभी महिलाओं को होली व दीपावली पर कपड़े, उपहार और मिठाई दी जाती है।

Dr. Shipra Dhar

प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं प्रशंसा

प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी भी डा. शिप्रा के कार्यो की प्रशंसा कर चुके हैं। वर्ष 2019 में वाराणसी दौरे पर बरेका में हुई सभा में अपने उद्बोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डा. शिप्रा के कार्यों की सराहना की और अन्य चिकित्सकों से भी आह्वान किया था कि वह भी इस तरह का प्रयास करें। डा. शिप्रा के प्रयासों की शिवपुर की रहने वाली मान्या सिंह भी प्रशंसा करती है। वह बताती है कि उनकी बेटी के जन्म लेने पर उन्होंने कोई भी फीस नहीं लिया। कहती हैं कि बेटियों के प्रति दर्द ऐसे और लोगों के भी मन भी जिस रोज आयेगा उस रोज समाज में जरूर बदलाव आयेगा।

इसे भी पढ़े: ड्रग्स तस्कर की कोठी को किया गया ध्वस्त

Spread the news