लखनऊ: बख्शी का तालाब के साथ-साथ पूरे प्रदेशों तथा कई अन्य प्रदेशों में राजनीति के गुरु माने जाने वाले तथा पूरे भारत में अपनी पहचान रखने वाले, बाबू भगवती सिंह (Babu Bhagwati Singh) का 90 वां जन्मदिवस मनाया जा रहा है। चंद्र भानु गुप्त कृषि महाविद्यालय के कृषि छात्र के रूप में मैंने वर्ष 1996 में बीएससी कृषि में प्रवेश लेकर, वर्ष 2000 तक आपके विद्यालय में स्नातक कृषि की शिक्षा पूर्ण की। समय था अंतिम वर्ष का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ। (Babu Bhagwati Singh) उस समय महाविद्यालय कानपुर विश्वविद्यालय से संबद्ध हुआ करता था।

जैसे ही परीक्षा परिणाम निकला हमारे निज निवास भौली ग्राम के निवासी अयोध्या बक्श सिंह ने हमें सूचना दी कि आपने चारों महाविद्यालयों में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। मैं एक किसान का बेटा था और कम संसाधन के कारण बाहर नहीं पढ़ सका। इसी महाविद्यालय (Babu Bhagwati Singh) में हमने पढ़ाई की और जब यह सुना तो पूरा परिवार खुशी से गदगद हो गया।

बाबूजी ने बुलाया और कहा कि आपने हमारे विद्यालय का नाम रोशन किया है। पीठ को थपथपा और कहा कि मेहनत और लगन से कार्य करना। हमें वह दिन आज भी याद है। बाबूजी ने अपने विद्यालय में हमें 2009 में क्रिकेट विज्ञान का अध्यापक नियुक्त किया। उनके जन्मदिवस पर याद आया एक समय की बात है कि बाबूजी किसी कारण बस हमसे नाराज हो गए। मैं उनके घर गया सुबह के 6  बजे कुछ गया। घंटी बजाया बाबूजी स्वयं निकले और कहने लगे कि मास्टर साहब इतनी सुबह आप यहां आ गए। सब खैरियत है, हमने कहा, जी बाबू सब ठीक है।

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एक दिन पहले बाबूजी हमारे ऊपर नाराज हुए थे बाबूजी 2 घंटे के बाद ही भूल गए कि हम किसी के ऊपर नाराज हुए थे। उन्होंने कहा कि जाओ मेहनत से अपना कार्य करो। आपके गांव के ही निवासी अयोध्या बक्श सिंह जोकि अगर खेत में सिंचाई करनी हो तो वह फावड़ा लेकर सिंचाई भी करने लगते थे। यदि कॉलेज का मुकदमा लड़ना हो तो कॉलेज का मुकदमा भी लड़ने के लिए काला कोट पहन लेते थे। इस कॉलेज में कोई शैक्षिक काम करना हो, तो वह शैक्षिक कार्य भी करते थे। वह आपके गांव के निवासी थे, उनकी विचारधारा पर चलो।

उस दिन से हमने बाबूजी को समझा और उनके द्वारा बताए गए रास्ते पर चलने लगा। जिस दिन बाबूजी का देहांत हुआ, उस दिन हमारी सबसे पहले मुलाकात सुबह हुई थी। मैं सीतापुर एक कृषि गोष्ठी में जा रहा था बाबूजी ने कहा, बहुत सुबह कहां आ गए। हमने कहा, बाबूजी एक गोष्ठी में जाना है। बाबूजी अपने शयनकक्ष में चले गए। मैं वहां से विद्यालय से निकला ही था, तब तक गेटमैन का फोन आता है कि बाबूजी नहीं रहे। हमारे पैर स्तंभित रह गए, हम सोचते ही रहे और पुनः  वापस लौट आए। वह दिन हम कभी भूल नहीं सकते, बाबूजी जहां भी हैं वह अमर हैं और हम लोगों के बीच में हैं। ऐसा हम महसूस करते आए हैं, आज के दिन हम उन्हें नमन करते हैं और ऐसी विभूति को हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उनका जन्म बार-बार धरती पर इस प्रकार के कार्य करने के लिए हो ऐसे थे बाबू भगवती सिंह।

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