

Mahakumbh 2025: नीतियों के साथ चरित्र का परावर्तन शुद्धि का सही मार्ग है। इस्लामी आक्रान्ताओं के काल से लेकर अंग्रेजों के शासन तक भारत में सामाजिक चरित्र का पतन कराने के कुत्सित प्रयत्न होते रहे। स्वतन्त्रता के उपरान्त यह दोष राजनीतिज्ञों, विचारकों की नीतियों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने लगा। इसकी परिणिति वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में साफ दिखायी देती है। भारत के दिग्भ्रमित राजनीतिज्ञों, सनातन विरोधी विचारकों और राष्ट्रीयता को कलंकित करने वाले वाममार्गी चिन्तकों के लिए शुद्धि का एक मात्र उपाय वैचारिक परावर्तन ही हो सकता है। वर्ष 2025 का अमृत महाकुम्भ इसी विचार के साथ पूर्णता को प्राप्त हुआ।
तीर्थराज प्रयाग की रज-शैया पर एक माह तक तपस्यचर्या में लीन रहने वाले सन्तों, गृहस्थों ने समवेत स्वर से भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रीयता का आग्रह दोहराया है। लाखों सन्तों ने इस अमृत महाकुम्भ को अपनी कुटिल वाणी के प्रहारों से आहत करने वालों को सचेत करते हुए कहा है कि अब समय आ गया है कि सनातन विरोधियों और वाचाल राजनीतिज्ञों को सही दिशा दिखायी जाय। उन्हें बताया जाय कि सनातन संस्कृति को मानने वालों की शालीनता कोई दोष अथवा दब्बूपना नहीं है। यह हमारी पहिचान है कि हम विरोधियों की तर्क संगत बातों को ध्यान से सुनते हैं। वहीं अनर्गल प्रलाप हमें भी पीड़ा देते हैं। अनावश्यक पीड़ा पहुँचाना यदि उनका स्वभाव है तो अब हम इसे सहते रहने को तैयार नहीं हैं। हजारों सन्तों-गृहस्थों ने इस बात की पुष्टि की है कि 2025 का यह महाकुम्भ काल की शिला पर श्रद्धालुओं के ऐसे पदचिह्न छोड़ गया है कि सच्चे इतिहासकारों को इस अवधि का आकलन करने पर सतयुग, त्रेता और द्वापर की झलक स्पष्ट दिखायी देगी।
सनातनी समाज को दुर्बल समझना भयानक भूल
अमृत महाकुम्भ को अपने विषाक्त वाकबाणों से दूषित करने वालों ने सनातन संस्कृति की सहिष्णुता को एकबार फिर दुर्बलता समझने की भयानक भूल की है। यह अभिमत व्यक्त करते हुए दिव्य प्रेम सेवा मिशन के संस्थापक श्रेष्ठ सन्त आशीष जी ने कहा कि भारतीय राजनीतिज्ञों का एक धड़ा अपने मानसिक खोखलेपन का परिचय देने से नहीं चूका। जब पृथ्वी के अधिसंख्य चिन्तक और विचारक महाकुम्भ की ओर दृष्टि गड़ाये बैठे थे तब इस धरा का अन्न-जल ग्रहण करने वाले आधारहीन लोगों ने अपने आपको हंसी का पात्र बना लिया। भारतीय मेधा कभी विपन्न नहीं रही। यही कारण है कि अमृत महाकुम्भ के प्रति समस्त संसार आकृष्ट हुआ। तद्यपि विकृत मानसिक सोच के सनातन विरोधियों ने अमृत महाकुम्भ के आयोजन पर विष वमन करके अपनी क्षुद्रता का परिचय सारे संसार के समक्ष दिया है।
भारत की धवल छवि देखने को मिली
जन-जन में समरसता का अमृतमय सन्देश प्रसारित करने वाले संगठनों के असंख्य कार्यकर्ता बिना भेद के जिस तरह संगम के जल और रज को स्वच्छ बनाये रखने के लिए दिन-रात तत्पर रहे उसे देखते हुए एक विदेशी राजनयिक ने अपना नामोल्लेख करने की अनिच्छा के साथ जो भाव व्यक्त किये वह अप्रतिम है- “जो कुछ देख रहा हूँ उसका वर्णन करके दूसरों को भरोसा दिलाना कठिन होगा। मैं एक ऐसे दक्षिण अमेरिकी देश से आया हूँ जहाँ भारतीयों की संख्या कुछ हजार तक सीमित है। भारतीयों से हमको कभी असुविधा नहीं हुई। अनेक पुस्तकों और समाचार पत्रों में भारतीय समाज की अच्छी छवि नहीं दर्शायी जाती। पर महाकुम्भ में भारतीय समाज की जैसी धवल छवि देखने को मिली है, वह अवर्णनीय है। भारत के गाँवों और नगरों के सभी वर्गों के लोग जिस तरह घुल-मिलकर इस सांस्कृतिक मेले में सम्मिलित रहे उसकी बराबरी नहीं मिलती। पुस्तक लिखने वालों को इस महाकुम्भ का वर्णन करने के लिए बहुत खुले हृदय और स्वच्छ मस्तिष्क की आवश्यकता होगी। मुझे पता चला है कि महाकुम्भ स्थल को स्वच्छ बनाये रखने के लिए सरकारी तन्त्र के साथ आरएसएस जैसे संगठन के स्वयंसेवकों ने बहुत श्रम किया। इस तरह के संगठन यूरोपीय देशों के लिए वरदान सिद्ध हो सकते हैं।”
अवैध प्रवासियों को बाहर किया जाय
महाकुम्भ के अवसर पर पूरे एक मास तक रेती पर बिस्तर लगाकर कल्पवास करने वाले जगन्नाथ त्रिपाठी इस महाकुम्भ को अद्वितीय मानते हैं। उनका कहना है कि भारत के प्रत्येक राज्य से करोड़ों श्रद्धालु हर प्रकार की चुनौतियों का सामना करते हुए यहाँ पधारे। महाकुम्भ के अवसर पर सनातन संस्कृति के पुरोधा सन्तों से लेकर सामान्य वैरागियों, शिष्यों और साधकों ने जैसी समरसता और एकता का परिचय दिया है। उससे सनातन विरोधियों के पाँव काँप उठे हैं। कलुष से भरे विद्रोही सोच से प्रभावित राजनीतिज्ञों और विचारकों को श्रद्धा के इस महासागर ने अपने पाप धोने की प्रेरणा दी है।
“यह हिन्दु समाज की महिमा का सागर है। श्रद्धा, एकात्मता और ममता हमारे चिन्तन का आधार है।” राजस्थान से पधारे डॉ. योगेन्द्र प्रताप सिंह चौहान, मुकेश बंसल, राजीव कपूर और लखनऊ के वृजेश श्रीवास्तव, सत्यदेव सिंह, नवीन श्रीवास्तव ने एक जैसा मत व्यक्त करते हुए विश्वास जताया कि भारत में अवैध रूप से डेरा जमाये बैठे विदेशियों को निकालने का अभियान शीघ्र चलाया जाएगा। इनके स्वर में स्वर मिलाते हुए अयोध्या के वीरेन्द्र वर्मा, शैलेन्द्र, रामलखन और जगदीश गुप्त ने कहा कि जब अमेरिका और यूरोप के देश अपने यहाँ सफाई अभियान चला रहे हैं, तो भारत को पीछे नहीं रहना चाहिए। इसके साथ ही इन सभी का अभिमत है कि भारत के जो नागरिक विरोध के नाम पर भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता के द्रोही बनकर उभरे हैं उन्हें सही दिशा में लौट आने के लिए अब अधिक समय नहीं देना चाहिए।
कलुष भरे प्रलापों से श्रद्धालु आहत हुए
मेरठ के छपरौली से आकर एक माह तक कल्पवास में रहे दीनानाथ, महेन्द्र सिंह, रायबरेली के वीपी सिंह, डॉ महादेव सिंह, सुरेश आचार्य, सतीश कुमार आदि का कहना है कि अमृत महाकुम्भ भारतीय संस्कृति का एक महान अनुष्ठान सिद्ध हुआ है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ के संकल्प की सिद्धि हुई है। समस्त सनातनी उनको साधुवाद दे रहे हैं। जिन परिवारों के लोगों ने इस अमृत महाकुम्भ की अवधि में सनातन संस्कृति की विराटता देखी है वह सभी आभार जता रहे हैं। चौबीस वर्ष की अंशिका और 18 वर्ष की मुद्रिका कहती हैं कि हिन्दु धर्म इतना विराट है, उन्होंने कभी जाना ही नहीं था। हिन्दुओं पर हिन्दुओं के हमलों से व्यथित अभय प्रताप, शिवांक रमन, यशराज और राघवेन्द्र, रंजना मिश्रा ने भारत को हिन्दु राष्ट्र कहते हुए क्षोभ व्यक्त किया कि सनातन संस्कृति के लोगों में ही इतनी सहिष्णुता और उदारता बची है कि निरन्तर आघात सहने के बाद भी विरोधियों को अपने देश में रहने दिया जा रहा है। किशोर वय के प्रान्जल और स्तुति ने पहली बार आस्था का इतना बड़ा जमघट देखा। स्तुति ने वयस्कता की देहरी पर पाँव रखे हैं।
उसका कहना है कि सबसे दुखद बात यह है कि टीवी और अन्य प्रचार माध्यमों में ऐसे समाचारों की अधिकता रही मानों हिन्दुओं के इस महापर्व का उपहास किया जा रहा हो। उरई जालौन से पधारे महन्त पीयूष दास और झांसी के रवीन्द्र शुक्ल का अभिमत है कि वैचारिक दरिद्रता के कूड़ा घर बने कतिपय प्रचार माध्यमों के घरानों के लिए महाकुम्भ ऐसा उदाहरण है कि इसे देखकर उन्हें अपना मानस बदल लेना चाहिए। प्रेस की स्वतन्त्रता का दुरुपयोग करने वालों ने निश्चित रूप से अपने मन की भड़ास निकालने का अवसर नहीं छोड़ा। इसी तरह साधु वेशधारी एक छद्म सन्त ने भी अप्रिय वक्तव्य देकर सभी को कष्ट पहुँचाया। ऐसे कपटी लोगों का समाज बहिष्कार करेगा।
सधन कुमार, रजनीश, प्रदीप, मंगल सिंह, अभिषेक सिंह, अभय प्रताप जैसे अनेक युवकों की टोलियां महाकुम्भ का चतुर्दिक प्रभाव सुनकर देखने चले आये। इनके साथ रामाश्रय, स्वामी जगदीशानन्द, स्वामी अभयानन्द और दण्डी स्वामी रामस्वरूप, हनुमन्त सिंह का एक झुण्ड एक कथा मण्डप में एकत्र था। जहाँ कथा वाचक तीर्थराज प्रयाग की महिमा का गान कर रहे थे। शास्त्रों में जिस प्रकार अमृत महाकुम्भ का वर्णन किया गया है उससे इन सभी के मन में सौभाग्य के इस अवसर पर उपस्थित रहने की गर्वानुभूति हुई। संगम तट पर क्षणिक दुष्प्रचार के कारण हुई दुर्घटना के समय यह सभी निकट ही उपस्थित थे। इन्होंने कहा कि प्रशासन की तत्परता, सेवा और मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ की भावाभिव्यक्ति ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। दुर्घटना से पूर्व कुछ लोग आशंकाएं व्यक्त कर रहे थे कि कोई अप्रिय घटना हो सकती है। इन सभी के मन में यह आशंका घर कर गयी है कि किसी गिरोह ने अफवाह फैलाकर दुर्घटना की स्थिति उत्पन्न की होगी। दुर्घटनाएं पहले भी होती रही हैं। पर इस बार महाकुम्भ की आयोजना करने वालों की चित्तवृत्ति में लेशमात्र कपट नहीं था।
सनातन संस्कृति के उभार का समय
लखनऊ के एक दैनिक समाचार पत्र में अनेक वर्षों से कार्यरत नरेन्द्र मिश्र, सुरेश सिंह, अविनाश शुक्ल, सत्यप्रकाश त्रिपाठी और पत्रकार संगठन के पदाधिकारी शिवशरण सिंह का कहना है कि भारत के करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के केन्द्र महाकुम्भ पर कपटपूर्ण शब्दावली का प्रयोग करने वाले लोगों के पाप तब तक नहीं धुलेंगे जब तक वह अपना वैचारिक परावर्तन नहीं करते। सच्चाई को स्वीकार करने से सारे पाप धुल जाते हैं। मृत्युन्जय सिंह, अमरीश वर्मा, शैलेन्द्र राजावत, ज्योतिसना, अरविन्द भण्डारी, राजकुमार, शनि प्रताप, रवि शाही, मानसी, डॉ सुरेन्द्र, राहुल सिंह आदि अधिवक्ताओं का कहना है कि 2025 का यह वर्ष सनातन संस्कृति के बड़े उभार का संकेत दे रहा है। भारत के साथ ही सारे संसार में सनातन संस्कृति की विशिष्टताओं का गौरवगान सुनायी पड़ रहा है।
प्रशान्त भाटिया एक बड़े उद्यमी एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इसके साथ ही वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता/पदाधिकारी हैं। सदा शान्तचित्त रहने वाले श्री भाटिया और अमितेश सिंह, राजीव शर्मा आदि साथी मिलकर अपने समय का बहुतांश समाज कार्य में अर्पित करते हैं। प्रोफेसर अजय सिंह चन्द्रशेखर आजाद विश्वविद्यालय में लम्बे समय से सेवारत हैं। डॉ. अजब सिंह यादव उन्नाव के एक इण्टर कॉलेज में काफी समय से प्राचार्य है। रामवीर सिंह और अंजना सिंह भी प्राचार्य के पदों पर सेवारत हैं। अजीत सिंह एक विदेशी कम्पनी में अधिकारी हैं। अजयदीप सिंह लम्बे समय से प्रशासनिक सेवा में सक्रिय रहे हैं। यह सभी समाज में अपने साफ-सुथरे काम के लिए जाने जाते हैं।
सूई चुभोकर सहनशक्ति मापना अनिष्टकारी
अध्यात्म चिन्तन ही जिनकी जीवनशैली है ऐसे जगदीश कुशवाहा, पूनम सिंह, इन्द्र प्रकाश दीक्षित, हरिलाल सिंह, विजय सिंह आदि का कहना है कि सहन करने की भी एक सीमा होती है। सूई चुभोकर सहनशक्ति मांपने की चेष्टा अनिष्टकारी सिद्ध होती है। अमृत महाकुम्भ जिनको आयोजन से पूर्व ही अप्रिय लग रहा था उनकी पहिचान सभी को पता है। ऐसे लोग सनातन संस्कृति के द्रोही हैं। समाज को उनका तिरस्कार करना ही पड़ेगा। पश्चिम उत्तर प्रदेश के निवासी गजेन्द्र सिंह विश्व हिन्दू परिषद के क्षेत्र संगठन मन्त्री हैं। मूलता वह आरएसएस के प्रचारक हैं। डॉ अनिल मिश्र श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारी हैं। अमित मिश्र, अमृतांश सिंह, आनन्द सिंह, सूर्य प्रकाश द्विवेदी, प्रो अजय, शाम्भवी भारद्वाज, अरविन्द पटेल, अशोक सिन्हा ऐसे जागरूक नागरिक हैं जो पूर्णतया सामाजिक कार्यों में संलग्न रहते हैं।
समाज ऐसे लोगों पर श्रद्धा और विश्वास करता है। इन सभी का कहना है कि बहुत हो चुका। अब भारत की राजनीति के बड़बोले सनातन द्रोहियों को आत्म मन्थन करना चाहिए। हिन्दुओं ने किसी के साथ शत्रुता का वर्ताव नहीं किया। इतने पर भी हिन्दुओं की आस्था के मान बिन्दुओं पर चोट क्यों की जा रही है। भारत द्रोही विचारधारा को पनपाने में लगे संगठनों का रंग-ढंग यदि नहीं सुधरता तो इन्हें समाज का कोप सहना पड़ सकता है। ऐसे ही कुछ प्रबुद्धजनों श्रीराम सिंह पटेल, विष्णु दयाल सिंह, सुरेश सिंह, राजकमल, विश्वजीत, श्यामवीर सिंह का कहना है कि देश और सनातन संस्कृति के प्रति द्रोह की भावना रखने वालों को प्रतिबन्धित करने की आवश्यकता पड़े तो समाज को चाहिए कि वह सरकार का साथ दे। देश को कलंकित करने वालों की वाणी पर अंकुश लगा कर उनका यह भ्रम दूर करना होगा कि प्रतिपक्ष की निष्पक्षता का अभिप्राय यह नहीं है कि देश की मर्यादा और सांस्कृतिक पहिचान को दाँव पर लगाकर राजनीति करना उनका विशेषाधिकार है।
प्रशान्त सिंह अटल उत्तर प्रदेश बार कौंसिल के सहअध्यक्ष होने के साथ उच्च न्यायालय में वरिष्ठ पद पर हैं। रणविजय सिंह चकबन्दी विभाग में एक वरिष्ठ अधिकारी हैं। हर्ष वर्धन सिंह भाजपा के युवा नेता हैं। डॉ. छत्रशाल सिंह और उनकी भार्या डॉ. अनीता सिंह दोनों शौम्य स्वभाव के ऐसे प्रोफेसर हैं जिनका बौद्धिक चिन्तन सराहनीय है। देवेन्द्र अस्थाना एक अच्छे गणितज्ञ होने के साथ राज्य सरकार में उच्च पद पर रहे हैं। धनन्जय सिंह एक बड़ी पेस्टीसाइट्स बनाने वाली कम्पनी के संचालक हैं। अमृत महाकुम्भ के स्नानोपरान्त इन सभी ने कहा कि भारत को वैचारिक दरिद्रता से मुक्ति दिलाने का समय आ गया है। राष्ट्रधर्म अब अपनी परिभाषा की रचना करना चाहता है। भारत में रहने वाले कतिपय कलुष से भरे लोग भारतीयता, राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक एकात्मता की जड़ों पर प्रहार करते रहें, आखिर यह कब तक चलेगा। लखनऊ के एक बड़े चिकित्सकीय संस्थान में उच्च पद पर सेवारत डॉक्टर विक्रम ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा- महाकुम्भ भारत के आत्म गौरव का सन्देश प्रसारित करने में पूरी तरह सफल हुआ है।
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भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पण का भाव व्यक्त करने हेतु महाकुम्भ में पधारे साधु-सन्तों ने पहली बार बिना किसी संकोच के धर्म ध्वज के साथ राष्ट्रध्वज को थाम कर जब यात्राएं निकालीं तो हजारों श्रद्धालुओं के कण्ठों से भारत माँ की जयकार का उद्घोष गूंज उठा। महाकुम्भ का त्रिवेणी संगम मानों गुहार कर कह रहा हो- हे भारत माता तुम्हारे श्रृंगार के लिए अमृत कुम्भ के साथ त्रिवेणी का यह जल अर्पित है। भारत में सनातन संस्कृति की अनेक धाराएं जब एक साथ इस त्रिवेणी संगम पर मन्त्रोच्चारण करती, गीत गाती दिखायी देतीं तब प्रतिक्रिया स्वरूप सनातन विद्रोहियों की त्वचा का रंग स्याह पड़ जाना स्वाभाविक था। महाकुम्भ की धरा पर चारों दिशाओं से श्रद्धालु कूच कर रहे थे, ऐसे समय में करोड़ों श्रद्धालु भाव विभोर होकर भारत की धरती के अमरत्व गुण का गान करने में लगे रहते। यह सभी अपने साथ भारत में सांस्कृतिक अमृतोत्सव का आह्वान लेकर लौट गये हैं। इससे इस बात का संकेत मिलना स्वाभाविक है कि दूषित मानसिकता का परावर्तन आदर्श सांस्कृतिक स्रोत की ओर होना चाहिए। भारत के जन-जन में अमृत महाकुम्भ ने नयी आशा और उमंग का संचार किया है।। इति।।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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